Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 81
________________ AMOLAR ज्ञानानन्दरत्नाकर। . देवसव रागी देवी काम क्रोध की खान, वीतराग सर्वोत्कृष्ट एक दाता पद निर्माण । धर्म नौका में भविजन को धार, कर भवोदधि पार ॥ १ ॥ जिन सम देव अन्य को जगम करे कर्म रिपुनाश, भ्रमतम हरण भानु जिनवाण तासम वचन प्रकाश । ऐसे तो केवल जिनवरही सार, करें भवोदधिपार २ ॥ संवतशत सुरराय हपंधर चरण कमल जिनराय, पूजत भविजन माय जिना लय वमुविधि द्रव्यचढाय । पूर्व पापों का करते संहार, कर भवोदषिपार ३ ॥ नाथूराम जिन भक्त ऐसे जिनवर को वारम्वार, मस्तक नाय प्रणाम करें करने को फर्म अवतार । भक्ति जिनवर की सुर शिव दातार, करें भयो "दापि पार ॥४॥ रावण को उपदेश ६०। युगल कर जोड़े मंदोदर नार, विनवे पारम्बार ।। टेक ।। मुनो यह गिनती अवला की नाथ, साधर्मी रघुनाथ । मिलो तुम उनसे सीताले साथ, अतिशय मारे हाथ ॥ दोहा। इन्द्रजीति अरु मेघनाथ सुत कुंभकरण तुमभात । यन्दि किये रामने छुड़ायो तिनको जाय प्रभात ॥ वचन दासी के चित्र लीजेधार, विनवे वारम्बार ॥१॥ . गयुत बोले लंकेश्वर बैन, बीत जान दे रैन । प्राव हनि अरि को सद मारों सैन, तयहो मोचित चैन । दोहा। प्रवल शत्रु लक्ष्मण में मारा रहा तुच्छ अब राम । ताकोहनि सुत बन्धु छुटाऊं तो दशमुख मुझनाम । झूठ मत जाने मावचन लगार, विनवे वारम्वार २ ॥ कहै त्रिय तुमको मियनाहिं खबर, पक्षराम की जवर । शक्ति लक्ष्मण की पियगई निकर, मुनी न तुमने जिकर ।।

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