Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर सर्पट। दिन प्रति पूजा शास्त्र कथादिक होवे अधिकार कटें पूर्व कृत पास दृष्टि जब गाते जिनराई धन्य जन्म उन्हीं का सारा, देखें दर्शन प्रनु थारा, है यही मनोर्थ म्हारा नित दशन दो त्रयवारा, यो बिनती नाथूराम करें बटु, याम रखे निजधामः प्रिटे भय मरण | तुमहो त्रिभुवन के नाथ जोड़ में हाथ नवा माथ तुम्हारे चरण जिनदर्शन की लावनी ६४। महारान लाज रखो जनकी, जन चरण शरण गाया. धन्य दिन तुम दर्शन, पाया || टेक ॥ मिनराज नाथ त्रिभुवन के त्रिभुवन के दुःख ही , मुक्ति मगके प्रकाश की, चरण युग थारे जो निन हिरदे धर्ती । कर्म हनि मुक्ति, वधूयता, जनगन्धों में ऐसा वर्णन गाया, धन्य दिन तुम दर्शन पाया. लाज रखा जनकी ॥ १ ॥ भये आज मुफल पदमेरे जो तुमतक चलाये, धन्यवृगः तुम दर्शन पाये, मुफल कर मेरेजो पूजन फल न्याये । धन्य रसना जिनगुण गाय, मुफल मम मस्तक तुम चरणन तलनाया, धन्य दिन तुम दर्शन पाया लाज रखो जनकी ॥ २ ॥ महराज इंद्रशत थारी करते यमुविधि पूजा, अन्य. तुम सम न देव दूजा, वचन गृदुधारे शशि मिश्री के खूजा । परत हिरदे शिवः मग सूजा. विरह यह थारा प्रभु त्रिभुवन में छाया, धन्य दिन तुम दर्शनपाया' लान रखो जनकी ॥ ३ ॥ जिनराज दास की विनती, यह विनती सुनलीजे, नाश यमुविधि अरिका कीजे, वारा शिवथल का निज सेवक को दीजे । कार्य. तुम से मेरा सीजे, नाथूरामयोर दर्शनको ललचाया, धन्य दिनतुमदर्शनपाया४. जिनभजन का उपदेश ६५ । जपो निनराग नाम राच्या, अन्य देव सव रागी द्वैपी मिथ्यामत रच्चा

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97