Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 66
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। योग पाण्डव हारे पृथ्वी सारी, फल कन्द खात बन भये वकला धारी, राजों को कर्म यह भिक्षा मंगवावत है, ताके मैंटन को किसी की ना ताकत है ।। कृष्ण के जन्ममें काहू न मंगल गाये, फिर पले नीच गृह वस गोपाल कहाये, विधियोग द्वारिका जली विपिन को धाये. भीलके भेप भाता कर प्राणगमाये कहीं जाउ पिछाड़ी कर्म का दल जावत है, ताके मैंटन को किसीकी नाताकत है ।। ६ ॥ श्रीपाल मदन तन कुष्ट व्याधि तिन भोगी, कर्मोदय से भये काम देव से रोगी, कुम्हरा धी व्याही माघनन्दसे योगी, जो सदारहे तप संयम में उदयोगी, कर्मोदय आगे सबकी बुधि भागतहै ताके मेंटनको किसीकी न ताक तहै, जो सुधी कर्यके उदय से बचना चाहै. तो श्रवण धार गुरु शिक्षा ताहि निवाहै, सम्यक रत्नत्रय धर्म पंथ अवगाहै, शुचिध्यान धनंजय से विधितरुको दाहै, क. नाथूराम जिय यो शित सुख पावत है, ताके मैंटन को किसी की ना ताकत है ॥ ८॥ उपदेशी लावनी ४५॥ जो जगमे जन्मा उसको मरना होगा । षश काल वली के अवश्य परना होगा ॥ टेक ।। जो सुगुरु शीख पर ध्यान नहीं लावेगा , तो नर भवरत्न समान वृश जावेगा । जो सुकृत करे अरु अघ से पछतावेगा , तो वेशक शक समान विभव पावेगा , विन धर्म भवोदधि कभी न तरना होगा , वश काल वली के अवश्य परना होगा ॥ १ ॥ जो विषय भोग में तू मन लल. चावेगा , तो भव समुद्र में पड़ गोते खावेगा , स्थावर तन लहि जडवत हो. जावेगा , यह ज्ञान गिरह का सो भी खोजावेगा , को दुःख निगोद के कहै जो भरना होगा. । वश कालवली के अवश्य परना होगा ॥ २ ॥ जब दल कृतान्त का तुझको आदावेगा , तव कौन सहायक जाके तट धावेगा . तव व्याकुल हो शिर धुन धुन पछतावेगा , जो करे पाप सो तव रोरो गावेगा. धन कुटुम्ब छोड पावक में जरना होगा । वश कातवली के अवश्य परना होगा ॥ ३ ॥ तू अभी पाप करते में विहसावेमा , फल भोगत में हाहा कर

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