________________
ज्ञानानन्दरत्नाकर कुटुमजन मधुमक्खी पहिचानो । चउगति चारों अहि निगोद अजगर मानो, जड़यायु रात दिन काटत मूम वखानो॥ है विषय स्वाद मधु विन्दुमेहतस्वररे ये विषय भाग दुःख खान इनसे तूडररे ॥ ६ ॥ विद्याधर राद्गुरु शिक्षादेत दयाकर, माने तो दुःखसे छूट जाय प्रातम नर । संसारमें सुख है शहद बूंद से लघुतर , दुःख कूप पथिक से गुणा अनन्ता अकसर । संसार दुःख सेड मुची थरथररे । ये विषय भोग दुःखखान इनसे तृडररे ॥ ७ ॥ खल काल चली से सुर अमुरादिक हारे, हरिहली चक्र पति याने क्षणमें मारे, येविषय भोग विषधर दारुण कारे, इनका काटा ना जिये जगत में क्यारे, इन के त्यागी भये नाथराम अमररे । ये विपय भोग दुःखखान इनसे तूहररे । ||
उदयागतकी लावनी ४४।
जगत में महा बलवान उदय अागत है, ताके मैंटन को किसी की ना ताकत है | टेक ।। जवनीबू उदय रस पाकर विधि देता है, तबएक न चले उपाय करे जैताह, जवती पवन में लहर उदयि लेताहै, तबकौन कुशल हो जहान को खेता है, मुंह जोरी करना इस जगह हिमाकत है, ताके मैटन को किसी की ना ताकत है ।।.१ ॥ हरिराम कर्म वश फिरे रंकवत वन में, हिम धूप पवनकी सहते वाधा तनमें, परगृह करते आहार सलज्जित मनमें, अथवा वन फल करते आहार विपनमें, यह बड़े बड़ों को सतावनी श्राफतहै। ताके मंटन को किसी की ना ताकत है ।। २ ।। रावण साधर्मी विधिवश सीता हरली, धन प्राण गमाये जग बदनामी करली, सीताभी कर्यवश विपत्ति पूरी भरली, पतिसे छूटी दो बार विरह दोजरली, विधिउदय का धक्का बड़ों को भी लागन है । ताके मैटनको किसी की ना ताकत है ।। ६ ।। वाईस वरस अंजना तजी भरतारे, फिर गर्भवती सासु ने निकासी क्यारे, माना पिताभी नहीं दीनी श्रावन द्वारे, वनवन भटकी तिन जाया पुत्र गुफारे, को रोकसके जो कमी की शरारत है। ताके मटन को किसी की ना ताकत है ॥ ४ ॥ दोपदी सती कहलाई पंच भरतारी, दुस्सासन ने गह चोटी ताहिनिकारी, विधि