Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 59
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। फैर महोदधि नृप अभिराम ! भये अनूपम ताही ठाम ॥ दाहा। तेनके सुत प्रति चन्द्र के दोय पुत्र अति धीर । यये प्रथम किहकन्द अरु छोटा अन्धक वीर ।। तिन्हें राज प्रतिचंद्र देय व्रतलेय गये तप करनेवन | जिन शासनका लहों आधार न कल्पित कहाँ वचन ॥ ४॥ एक दिवस विजया पर आदित्यपुर के विद्याधर ने । नृपति बुलाये स्वयंवर मंडप में कन्या वरने ॥ नृप 'किहकन्द श्रीमाला ने तहां प्रेम धरके परने। स्थनूपुर का ईश लेख विजय सिंह लागा जरने ॥ चौपाई। भया परस्पर युद्ध महान | अंधक ने कर गहि धनुवाण ॥ विजय सिंह मारा सरतान । भगी सेन ताकी तज थान ।। दोहा। असन वेग ताका पिता सुनत चढ़ा ले सेन तव वानर बंशी भये सन्मुख तहां रहेन । असनवेग ने घेर किहकपुर कपि बंशिन से कीना रन । 'जिन शासन का लहों आधार न कल्पित कहों वचन ॥९॥ असनबंग का सुत विदयुतवाहन किहकन्द लड़े ले वाण । असनवेग ने तहां मारा अंधक दारुण रण ठान ॥ विदयुतवाहन ने किहकन्द किया घायल मारीसिलतान । मूळ खाकर भूमिपर गिरा मगर ना निकले प्राण ।। चौपाई। तव लंकेश मुकेश उठाय । रखा किहकपुर में सो आय ॥

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