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ज्ञानानन्दरत्नाकर 1
या कह लक्ष्मण गये समर को दशकंधर आया बनमें । रूप सिया का देख आशक्त भया कामी मनमे ॥ ॥ चौपाई ॥
विद्या से दशमुख यह जानी । जनक सुता यह रघुवर रानी । सिंहनाद की कद मुखबाणी । गये समर में लक्ष्मण ज्ञानी ' ॥ दोहा ॥
तब छिपके दशमुख किया सिंहनाद भयकार | सुनत राम धनु बाण ले भये समर को स्यार || सीताके ढिग छोड़ जटाई गये समर को रघुराया | तिसका वर्णन सुनो जैसा जिन आगम में गाया ॥ ४ ॥ देख अकेली सीताको दशमुख ने तुर्त विमान घरा । बिलपति सीता जटाई उठा युद्ध को क्रोध भरा ॥ चोंच पंजों से अंग रावण का गिद्ध ने लाल दिया थपेड़ा दशानन उलट जटाई भूमि
करा ।
॥ चौपाई
परा ॥
गिरा जटाई मृतक समान । गया दशानन बैठ विमान ॥ - इधर राम पहुंचे रण म्यान । चलत जहां नाना विधिवाण ॥ ॥ दोहा ॥
देख लक्ष्मण रामको कही प्रभू किस काम ।
सीता तज, आये यहां अभी जाउ उस उाम ॥
कक्षी राम हे भ्रात यहां तुम सिंहनाद क्यों बजाया । तिसका वर्णन सुनो जैसा जिन श्रागम में गाया ॥ ५ ॥ लक्ष्मण कही किया छलकाहूं लौट बार सीता के पास । मैर को पलक में तुम प्रसाद से करहों नाश ॥ गये राम तो लखी न सीता तब अतिही मनमेंभे उदास । दूढत वन में लटाई दृष्टि पड़ा तहाँ चलते स्वास ||