Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ ૫૦ ज्ञानानन्दरत्नाकर 1 या कह लक्ष्मण गये समर को दशकंधर आया बनमें । रूप सिया का देख आशक्त भया कामी मनमे ॥ ॥ चौपाई ॥ विद्या से दशमुख यह जानी । जनक सुता यह रघुवर रानी । सिंहनाद की कद मुखबाणी । गये समर में लक्ष्मण ज्ञानी ' ॥ दोहा ॥ तब छिपके दशमुख किया सिंहनाद भयकार | सुनत राम धनु बाण ले भये समर को स्यार || सीताके ढिग छोड़ जटाई गये समर को रघुराया | तिसका वर्णन सुनो जैसा जिन आगम में गाया ॥ ४ ॥ देख अकेली सीताको दशमुख ने तुर्त विमान घरा । बिलपति सीता जटाई उठा युद्ध को क्रोध भरा ॥ चोंच पंजों से अंग रावण का गिद्ध ने लाल दिया थपेड़ा दशानन उलट जटाई भूमि करा । ॥ चौपाई परा ॥ गिरा जटाई मृतक समान । गया दशानन बैठ विमान ॥ - इधर राम पहुंचे रण म्यान । चलत जहां नाना विधिवाण ॥ ॥ दोहा ॥ देख लक्ष्मण रामको कही प्रभू किस काम । सीता तज, आये यहां अभी जाउ उस उाम ॥ कक्षी राम हे भ्रात यहां तुम सिंहनाद क्यों बजाया । तिसका वर्णन सुनो जैसा जिन श्रागम में गाया ॥ ५ ॥ लक्ष्मण कही किया छलकाहूं लौट बार सीता के पास । मैर को पलक में तुम प्रसाद से करहों नाश ॥ गये राम तो लखी न सीता तब अतिही मनमेंभे उदास । दूढत वन में लटाई दृष्टि पड़ा तहाँ चलते स्वास ||

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97