Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 51
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। वर्णन तितका करों जैसा जिन आगम में गाया ॥१॥ लेके खंग लक्ष्मण रघुवर तटगये सुनो भव कथा नयी । शत्रु पुत्र के पास ले भोजन सूर्पनखा गयी ॥ कटा भिड़े को देख पुत्रकी पहिले निंदा करतिगयी । फिर शिर देखा पुत्र का तव तिन भूमि पछार लयी ।। ॥चौपाई॥ करति चिलाप हनत अरिधाई । दृष्टिपड़े लक्ष्मण रघुराई ॥ तिन्हे देख सुत मुधि विसरायो । कामातुर विट देह बनाई ।" ॥दोहा॥ बोली रघुतट जाय के मैं अविवाही नाय । युगल भात में एक यो कर गह करो सनाथ ॥ व्यभचारिणिलख कहीराम विकत झपुरुषपरमन भाया। तिसका पणन सुनो जैसा मिन पागम में गाया ॥ २ ॥ झिड़कारी लक्ष्मणने जवही तर लज्जिनहो आईघर । कोली पनि से नारि युत आये है वन में दो नर ॥ शत्रु पुत्र रत खंग लिया तिन फाड़े वस्त्र मेरे निजकर । मुन खर दूपण घनाये रण वाने अत्र करों समर ॥ ॥चौपाई॥ रावण के तट दूत पाया । समर सुनत दश मुख उठ पाया । इन खर दुपण दन सजवाया। गर्जत घन सानम पथ आया। ॥दोहा॥ - रण बाजे मुन रामने कही मुनो लघु भात । तुम सियकी रक्षा करो हम लड़ने को जात ॥ तव लक्ष्मण शर चाप उठा रघु चरणों मस्तक नाया । तिसका वर्णन सुनो जैसा जिन आगम में गाया ॥३॥ हे अगज तुम सिये रखाओ में लड़ने जाता रणमें । भीरपदे तो करोंगा सिह नाद साही चणा में 112

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