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ज्ञानानन्दरत्नाकर। बनाय दयनरते ! काम क्रोध पद मोह लोभ वश आपनियकार्य करते ॥ ७ ॥ को कर्णन कहै कुशकी उत्पत्ति कहैं कुश दूवाकर । मच्छ गंधिका मच्छी से गांव गगाजल में हुएनर ॥ निर्वक झूठी युक्ति मिलाते जैसे नाम सुनतं अकसर तिसीही उत्पत्ति तिन्हों की कहै पेड़ रो विनजर | जिन बच सूर्य समान सुनें ना मर्म तिमरको जो डरते । काम क्रोध मद मोह लोभ वश आपनिय कार्य करते ॥८॥ लीलानाम खेल का है मो खेल करें अज्ञानी जन । पूज्य पुरुष.ये खेल न करते नर्क बाप्स जिनके लक्षण || अपने ढोंग पुजाने को यह उन दुष्टों ने किया यतन | अक्क बने अरु निन्दा करते महा पाप में रहैं मगन । झूठे ग्रंथ कटिलता से रच निन स्वार्थ को आदरते। काम क्रोध मद मोह लोभ वश श्राप निघ कार्य करते ॥ ६॥ कृष्णादिक सत्पुरुषों का उत्तम कुल जिनमत में माया। धर्म नीति युत राज्य किया निन नहीं करी किंचित माया | अपने ढोंग पुजाने सो यह फन्द खलों ने बनाया। जिन गृह मत जाउ कभी भोरे जीवों को वि. माया ॥ नाथूगम जिन भक्त वहां दुष्टों के अन्दमय लख परते । काग क्रोध मद मोह लोभ यश भाप निंद्य कार्य करते ॥ १० ॥
* शाखी* सुख करन कलि मल हरण तारण तरण त्रिभुवन नायजी । कल्याण कर्ता दुःख हा नवों तुमपद मायनी ॥ है बिनय जनकी यही मनकी रखो चरणा सायनी । भवसिंधु पार उतार स्वामी पकड़ जनका हाथजी ॥
दौड़ * प्रभुनी तुगदो तारण तरण । जनको राखो पदों के शरण ॥ मोगन से तु. म्हारे चरण । जनका मैटो जन्मन मरण ॥ जपे जिनभक्त नाम तेरा । नाथूराम चरणों का चराजी ।।
॥ श्रीजिनेंद्र स्तुति॥७॥
श्रीजिन करुणा सिंधु हमारी दुरकरो भवपीर सनम | आशा की आशा पूरो सब माफ करो तकसीर सनम ॥ टेक ॥ यह संसार अपार नीरानीध प्रति दारुण गम्भीर सनम । गोता खात अनादि काल से मिलान भव तक तीन सनम।।