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ज्ञानानन्दरत्नाकर । हो नमस्कार हरिवार कहू || आप पढ़ें और को पढावें अध्याय विस्तार कहूं । ऐसे मुनिवर कहावे उवज्झाप जगनार कहूं॥
पच अस्वीस गुणधारी यती उपाय सो जानो । यहा भट मोह को क्षण में परिगृह त्याग के हानो ॥ सप्त भय अष्ट मद बज कर करे तप चोर सूरानी ।। लहै वाइस परीपह को अचल पाणाप गिरि मानो । शुक्ल ध्यान धर कर्म नाश कर एसे मुनि शिवनारिचरें ।। सुर नरके सुख भोग बमु अरि हरके भव सिंधुतरें ॥ ४ ॥ णमोलोए सव्यसाहूंण पंचम पदके ये नववर्ण | नमस्कार हो लोकके सब साधुन के बन्दों चर्ण ॥ साधे तप तज भोग जान भव रोग सो तारण तर्ण | अष्टाविंशति मूल गुण के धारी मुनि राखो शर्य ।।
॥ शर।। सार ये पचपरमेष्टी भक्ति इनकी सदा पाऊ | न हो क्षण एकभी अंतर जब तलक मुक्ति ना जाऊं । मिले सत्संग वर्मिण का सवों के चित्त में भाजा जपो बसुयाम पद पांचो भावधर हर्ष से माऊ ॥ नादार शिवधामवमान को नमोकार अहि निशि उ चरें । सुर नर के सुख भोग वसु अरि हरके भव सिंधु तरें ॥ ५ ॥
-- ॥ विष्णु कुमार चरित्र॥
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शाखी॥ विष्णु कुमार चरित्र मुनो सब कान लगाई । जिन वलिका अभिमान हरा गजपुर जाई ॥ विक्रिया ऋद्धि प्रभाव देह लघु दीर्घ वनाई । मुनि गण का उपसर्ग हरा कीर्ति जगछाई ॥
. दौड़ जिसे कदते हिंदू नरनार ! धरा ईश्वर वावन अवतार ॥ छलन वलिको