Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 39
________________ ३७ शानानन्दरत्नाकर चते लखे सो कुदेव पूजन होय बड़ा।। इतनी सुन नृप चन्द्रगुप्त ने सुत सिहा सन दिया पड़ा । आप दिगम्बर मया गुरु संग लगा तप करनकड़ा ॥ नायूराम जिनभक्त कहे सोना स्वप्नफल श्रुत अनुसार । भद्रबाहु ने कहे तिनके फन्न सो वर्तते पवार ||४|| ॥पतीवता सतीकी लावनी ३१॥ मनाचकाय लीन निजपति से है सुशीला वहे सती । सुरनर जिनको जर्ने गुण गावे वेद पुराण यती ॥ टेक ॥ तात भात सुतसम औरों को लखे भवस्था के अनुसार । नेम धर्म में रहे लवलीन वही कुलवन्ती नार ॥ पति भाज्ञा मनुसार चने निवजन्म उनी का नगर्ने सार । विपत पड़े भी विमुख नाय सदा सेवे भरतार ॥ छाया सम ना तने साथ हिरदय में विराजेसदा पती । सुरनर जिसको जर्ने गुण गावे वेद पुगण यती ॥ १ ॥ नियत सदा पति के पद से स्वप्ने भी ना करे उजर । प्रबल पुरपसे मरे जो आप प्रया गति जाय सुघर ॥ भो कदाचिपति मरे प्रथमतो संयम शुद्धमजा के सर । ध्यान भग्निमें दहै काया कलंक ना लावे हर | त्रिभुवन में हो पूजनीक वह पारे बेसक स्वर्ग गती । सुरनर जिसको जजे गुणगायें वेद पुराण यती २ ॥ तृण लकड़ी की पायक में ममता वश देश जलाती है । मूढजनों की समझ में वही सती कहलाती हैं । कर अपघान मरे जलसो निश्चय दुर्गति को जाती हैं । नामवरी को जले पहिले फिर प्रण छिपाती हैं । जो तपकर तन जनावती सती वेही ना फेररती । मुरनर जिसको जगे गुणगावें वेद पुगए यती ॥ ३ ॥ ब्रह्मी सुन्दरी सुलोचना अंजना जानकी सुनाई । और वि शल्या मुभद्र। मनोरमा पागम गाई ॥ द्रोपदी चन्दना और चौविम जिर माता सुखदाई।इन्हें मादिदे सती बहु जिन कीति जगमें छाई । नेमार जिया सी नारी कही सुशीला राजमती । सुरनरनिसको ज में गुणगावे वंदपुराण यती ४ ॥वारे पन में करेंतपस्या ब्रह्मचर्य सेव तजकाम । परम सतीसो कहावे पूजनीक नग जो नाम | पतीव्रता दूसरी सनी जो निज पतिराचे व मधाम || दो प्रकार की सती ये करी जगति में नाथूगम ॥ जो एम लक्षण युत नारी पूछ

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