Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 46
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर अथवा वृक्ष पम्बूल लगाके । कौन भाम चाखत है पाके । ॥दोहा॥ इस से यह निश्चय भया करे सो भोगे भाप । पुण्य करे सो पुण्य फल पाप करे सो पाप ॥ करनी करे नर्क जाने की स्वर्ग में कैसे वास करे । वांछित फल को मापने करसेही तो नाशकरे ।। ३॥ एक चकेकी गाड़ी सदा सर्वत्र न भूपर गमन करे । त्यों पुरुषार्थ कर्म एकले से नाही कार्य सरे ॥ जो नदी अनुकूल वहै तो तीरन वाला सहज तरे। बहै विपर्यय तो तरना कठिनता से लघु दृष्टि परे । ॥चौपाई॥ तैसे कम जव होय सहाई । अल्प करे बहु पड़े दिखाई ।। जोप्रतिकूल होय दुःख दाई । कठिनता से लघु कार्य कराई ॥ ॥दोहा॥ लेकिन करना मुख्य है बिना किये क्या होय । नाथूराम यासे सुधी शिथिल होउ पत सोय ॥ जो तू भाप हो निर उद्योगी पुरुषार्थ ना खास करे । पांछित फल को आपने करसेही तो नाशकरे ॥ ४ ॥ ॥ खाता गांव के रथकी लावनी ३५ ॥ सुकृत कमाई उन्ही की है जिन धर्म कार्य में लगाया धन । मन वचतन म प्रभावना अंग विर्षे नित रहैं मगन ॥ टेक ॥ गैर २ के जैनी भाई खाता गाव चलकर भाये । देख महोत्सव चित्त भपने अपने सब हर्षाये ॥ हम भी जन्म सुफल माना जब जिन छवि के दर्शन पाये । जिन प्रतिमा को देखने अन्यमती भी तहा पाये ॥ च्य भमि उस पुण्यक्षेत्र की जहां बसे साधी

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