Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 48
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर मिलो नहीं आवे चार पलमें दोनों ॥ टेक ॥ मानापिया दशकन्य महा मति म्न्द भई अवकी वारी । राक्षस कुल के नाश करने को कति हिरदयधारी तीनखण्ड के धनी नाथ तुम हरलाये जो परनारी । कैश छुटे लगा पिय यह कलंक कुलको भारी || नारायण वलभद्र नाथ वे प्रगट भये कल में दोनों। लेके जानकी मिलो नहीं आ वीर पल में दोनों ॥ १ ॥ सुनवच रावण कदै नार क्यों करती है दिलमें शंका । बीच सिधुके पड़ी यह प्रगम्प मेरी लका | भूमि गोचरी रंक करत सवशंक मुनत मेरा डंका | तीनखण्ड में युद्ध करने को कौन मुझसे वंका || हमखगपति वे भूमिगोचरीन पृथीस्थल में दोनों । लेके जानकी मिलो नहीं आवें वीर पल में दोनों ॥ २॥ हायजोड़ फिरकहै मन्दोदर वचन हमारे मान पिया । वान्दर वंशीभूपसर गिले उन्हों में शान पिया ॥ अंगांगद सुग्रीव नीलनल भामडल हनुमान पिया । भूप विराधत सेनले आये बैठे विमान पिया || धनुषवाण लिये हायहरी बलगर्जरहे बलमें दोनों । लेके जानकी मिलो नहीं श्रावे वीरपलग दोनों ॥ ३ ॥ चार बार समझावे मन्दोदरि धरें शीश युग चरणन में । एकनमाने लगपत्ति कैसी कुमति वैठी मनमें ॥ बहुन चुकेर युद्धनाथ अत्रधरो ध्यान जाके बनमें ! पर नारी के काज क्यों देहु प्राण अपनेरनमें ॥ नाथूराम कई तव परितहो जर लड़ई दलमें दोनों । लेके जानकी मिलो नहीं भावें वीर पल में दोनों ॥ ५ ॥ ॥रावण मन्दोदरी सम्बाद ॥ ३७॥ चरण कमल नवक? मन्दोदरि यह विनती प्रियभाम कीहै । जनकसुताको पठावो कुशल इसी में धामकी है ।। टेक ॥ हम अबला गत्ति हीन दीन क्या समझा ऐसा कीजे । पंडित गण के मुकुट प्रिय तुपको क्या शिक्षादीजे ॥ भो हितकारी होय करो सो कहा मान इतना लीजे । ऐसाकीजै नाय जिसमें न कला कुलकी छीजे ।। ॥शैर।। भानुसम तेजक प्रकाशित वन्श यह राक्षस पिया।

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