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ज्ञानानन्दरत्नाकर
को तरुण अवस्था तरणीसार ॥ टेक || बालकपन बापला स्वपा विज्ञान भेद कैप्से जोदे । क्रीड़ा कौतुक कांचा कलह करन की जहां होवे ॥ क्रिया हान खाने में लीन चित कभी इसे कबहू रोवे । आत्महितके सोच विन सदा नींद गहरी सोधे ॥ पाप करत कुछ भय न हृदय में इठकर हने वारी धार । जना जलधिक तरण को तरुण अवस्था तरणीसार ॥ १॥ वृद्ध भये तृष्णा अति बाढ़ कभी न मन आवे संतोष । जो त्रिलोक की सम्पदा से परित होवे निज कोष ॥ तन अशक्त विकलेंद्रिय उद्या हीन खिने क्षण वणकर रोप । नष्ट पद्धि हो क्रिया से भ्रष्ट भया करता सब दोष || गमता वस ना उदास तन से तने न गन से गृह का भार | जन्म जलधि के तरण को तरुण अवस्था तरणीसार ॥ २ ॥ तरूणपो पौरुप पूरण सब क्रिया करना चित उत्साह | प्रवल इद्रिया ज्ञानकी वृद्धि सकेकर वन नियहि ॥ शक्ति परीपह सहन योग्य स्वाधीन ध्यान धरसके अथाह । श्रुनाभ्यास से भेद विज्ञान भयं हो पूरण चाह ।। सर्व कार्य के सिद्धि करन को शक्तिव्यक्त व तिस बार । जन्म जलाधि के तरण को तरुण अवस्था तरणी सार || ३ || तरुण पने ग सा सामग्री मुलभ आय इकठा हो । काल लब्धि इसीका नाम सुथी इसको जोचें ॥ ऐसा अवसर पाय कधी दुर्वसन नीद में दिन खोयें | तथा कलह में लीन रह अन्त कुगति पड़ के शेयें ॥ नाथूगम निज काम सम्हारो मिले न अवसर पारस्वार | जन्म जलधि के तरण को तरुण अवस्था तरणी सा ॥ ४॥
॥ पुरुषार्थ की लावनी ३४॥
अरे मूढ़ पुरुषार्थ तज च्या कर्म की प्रासकरे । बांचित फल को आपने करसेही नो नाशकरे ॥ टेक ॥ बाल बुद्ध सबही जानके विन बोये ना जमला खन । और जमे विन अन्न भूमा भी खेत ना किंचित देत ॥ उधमकर बोचे रुरखाने सो जन फल निश्चय कर लेत। ऐसा जानो सदा पुरुषार्थही सब सुख का हेत॥