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ज्ञानानन्दरत्नाकर । मानुष्योत्तर परधारा । दजे में प्रकाश नाप तीज को बचन बलिपर सारा । अष नृप दीजे और पृथ्वी जो वचन मुख से हारा ॥ बोला बलि मो शीस भगे पद सब खल का अभियान मरा । ऋषि रक्षाको विनिया रिद्धिमे चावन रूपधग ।। १९धरा पांव चलिके शिर जन मुनितव विधन अतिखाईभय । हाथ जोड़ बकरी स्तुति मुखसे भाषी जयजय ।। नारद और सुरामुर स्तुति करन लगे प्राके तिशय । हे करुणा निधि करो रचादी प्रभुदान अभय || तव मुनि पांव उठाय लिया पद नवत यये द्विज सुरायुग । ऋपि रक्षाको विक्रिया गिद्धो दावन रूप घरा ॥ २० ॥ यज्ञनाश मनि सर्व वचाये रक्षा कीनी विष्णु कुमार । नत्र से प्रचलित भई रक्षा बन्धन पूनों यह सार ।। फटें मन्यों के कठ धुमां से ली. लतरंच न बने खखार ॥ तब पुर वासिन बना सिमपन का दीना नर्म प्रहार तब से यह पानन दिन गाना रक्षाबन्धन सर्व नरा | ऋपि रक्षाको विक्रिया सिद्ध से पावन रूप धरा ॥ २१ ॥ चारो हिन भास्क ब्रत लीने विष्णु कुमार पप गुरुपर | फिर कर दिक्षा लई क्षदोपल्यापन की विधिकर ॥ विक्रिया रिद्धि से विष्णु कुमार ने रूप धराया अति लघर । ताको बहुजन को पावन अवतार लिया ईश्वर ॥ नाथूराम जिन भक सत्य यों और भांति कहते लबरा | ऋपि रक्षाको विक्रिया रिद्धि से बावन रूप धरा ॥ २२
शाखी परम ब्रह्म स्वरूप तिहं जग भूपहो जग तारजी । महिमा अनन्त गणेश शेश सुरेश लहत न पारजी ॥ मै दास तेरा चरण पेरा हरो मेरा मारनी । जिन भक्त नाथूराम को जन जान पार उतारनी ॥
॥दौड़। प्रयू मै शरण लिया याग । जन्म गद मरण हरो म्हारा ॥ प्रभू मै सहा दुःख भारा । किमी से टरा नहीं हारा । विरद सुन नाथूराम जिन भक्त । भजन थारे में हुए आशक्त जी ॥
तीर्थकरके गुणों की लावनी २६ । छालिस गुण युत दोष अठारह रहित देव अंहत नमों । त्रिभुवन ईश्वर