Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 29
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर | १७ अरि हरके भवसिंधु त ॥ टेक ॥ प्रथम रामो अरिहंताणं पद सप्ताक्षर का सुन विषय | अरिहंतन को हमारा नमस्कार हो यह शाशय ॥ शरिहंत तिनको क जिन्होंने चार घाति विधि कीने तय । जिन घाणी का किया उद्योत हरण भाव जन की भय ॥ शेर । जिन्हों के ज्ञान में युगपन पदार्थ त्रिजग के झलके । चराचर सूक्ष्म थरु वादर रहे बाकी न गुरु हन्के ॥ भविष्य भूत जोवर्ते समयज्ञाता घटी पलके । अनंतानन्त' दशन ज्ञान अरुवारी हैं सख बलके । तीन छत्रशिर फिरें दुरें वसुवर्ग चगरसुरभक्ति करें। सुरनर के सुख मांग वसुरि हरके भव विधुतरं ॥ १ ॥ द्वितिय मो मिद्धा पदके पंचाक्षर भो सार कहे। सिद्धों के से हमारा नमस्कारको अर्थ य ॥ स्त्रिद्ध चुके करकाम सिद्ध विन नाम तिष्टि शिवधाम रहे। कर्म को नाशकर ज्ञानार्दिक गुण थालदे | ॥ शेर ॥ घरं दिसा जो तीर्थकर जिन्हीं के नामको भजकर करें हैं नाश वसु अरि -का सवल चारित्र दल मजकर ॥ नवों में नाथ ऐसे को सदाही घट गद तजकर | सुफल मस्तक हुआ मेरा प्रभु के चरणों की रजकर । लेत सिद्धा नाम सिद्धि हो काम विघ्न सब दूर करें || २ || तृतिय गो श्राइरिश्रापद मातर का भेद सुनो। जिसके सुनते दूर हो भव भव के खेद सुनों ।। आचार्यन को नमस्कार हो यह जनकी उम्मेद सुनो। करों निर्जरा बन्दनकर के अत्र का छेद सुनो ॥ ॥ शेर ॥ पुग्यों में जो शिरोमणि हैं यती छत्तीस गुणधारी करें निज शिष्य श्रग्न को कई चरित्र विधि सारी || प्रायश्चित लय मुनि जिन से गुरू निजजान हितकारी । हरें वसु दुष्ट कर्मों को बरे भव त्याग शिवनारी || ऐसे मुनिवर सूर घरं तप भूर कर्मों का चूर करें |सुर नरके सुख भोग बसु थरि हरके भवसिंधृतरें || ३ || सूर्यणो उवझायाणं पद सप्ताक्षर का सार कहूं । उपाध्याय के त

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