Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 15
________________ शानामन्दरलाकर । मये सुखारी आखों में। वसी निरन्तर अनूपम आनंदकारी पाखों में ।। ४ ॥ * परम दिगम्बर जिन मुद्रा की १२* नास भये पत्र पाप लखी जिन मुद्रा धारी आखों से । मोह नींद का नया आताप पानी पाखों मे || टेक |परमदिगम्बर शांनि त्री ना नाय विसारी साखों में लग गया गन यथा मणि देख भिखारी श्राखों से ॥ होत कनार्थ देख दर्शन नम मुर ना ना भावों से । पर द्रव्यो को हेयलख प्रीति निवारी भासी ॥ निज स्वरूप में मन भलख मम्पकधारी श्राखों से | मोहनदि का गया साताप पारी पाखों से ॥१॥ कायोत्सर्ग जया पदासन प्रतिमा थारी भावनादेवन होता दाश यानन्द अधिकारी भाखों से || ध्याना हद शाम दृष्टि नाशा पर धारी आंखो मे ॥ विस्मय होता देख छवि अचरज कारी यांतों से । देवों कृत शुभ अतिशय देखत सुख हो मारी आंखों से || मोड नीद का नया साताप हमारी आंखों में ॥२॥राग द्वैप मद मोर नशेतम भक्ति उनारी भाखामा चिनावंडी का संताप से टारी आंखों से । निन परकी पहिचान भई उर दृधि पसारी बांखों से । महमति सारी गई देखत धीधारी थांखों मे ॥ प्रय संमार निकट अायो गिन छवी निहारी आंखों से ! मोह नींद का गया याताप हमारी शांवों में ॥ ३ ॥ सहस्राक्ष कर निर्खत वासव चवी तुम्हारी आंखों से तृप्त न होता देख छवि महा सुखारी आंखों से ।। भान गई विपदा छवि देखत क्षण में सारी यांखों रो। कोई माणी दृष्टि ना परे दुःतारी प्रांखों से | नाथूगम जिन भक्त दरश लख कुपति विड़ारी पाखों से। वमी निरन्तर अनूपम भानन्द कारी पाखों से ॥ ४ ॥ ॥दर्शनकी लावनी १३॥ हे प्रभुदीन दयाल पदा मुझको अपनी दाजे दर्शन | मैंजन धारा हमारा हरो कष्ट प्रभुहो परसन ॥ टेक । तुम त्रिभुवन के ईशतुम्हें सज और शीस किरह

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