Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 24
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर । से हित कीजे मिलाऊं शिव युदरि का द्वाराजी ॥ नाथूगम जिन भक्त सुमति कहै मो सम अरु को हितकारी । गरेरंग राचो हर्प धर भोगो शिव सुहरि प्यारी ॥ ८॥ ॥ कुमति चेतन का झगड़ा २२ ॥ चेतन चेत कुमति कुलटा तज मुमति सुहागल उरधारी । भो शिव रमणी की सहेली जा सम और नहीं नारी ॥ टेक । कुमति मान विजुहा चेतन को लगी उलहना खिजकर दैन । सुमति सौति ने तुम्हें बिहकाया सुनाकर मोठे वैन ॥ पर पैहो अति कष्ट वहां तुम जब करो जप तप दिन रैन । विषप भोग ये स्वप्ने भी नहीं मिले देखन को नैन ।। तत्र करही वच यादि हमारे' र अभी मुमति लागत प्यारी | जो शिव रपणी की महली जा सम और नहीं: नारी ॥ १ ॥ चनन कही कुगति कुलटासन तेर साथ यति कष्ट सहा नाना विधि मैने नर्क गत्यादिक में नहीं नाय कहा ॥ काल लब्धि शुभ के संयोग अब मुमति नारि का संग लहा । तेरी कृति जानी सर्व अब बहुत काल भव सिंधु वहा । अब टल मुंहकर श्याम सुमति है भाम हमारी हिराकारी । जो शिव रमणी की सहेली ना सम और नहीं नारी ॥ २ ॥ कुमति बहरे मूह चि. दानन्द सुमति सदन तू वास करे । मुझ सी तरुणी तन प्रगट अन्धे मुखका तू नाश करे ॥ चना भिखारी फिरे घरोघर पाख मास उपवास करे । सुख वर्तमान को छोड़ अज्ञान भविष्यत आश करे ॥ मुमति सत्य टौनाकर तेरे प्रेमफांस गल में डारी । जो शिव रमणी की सहेनी नासम और नहीं नारी ३ ॥ अरी कुमति निर्लज्ज महा दुःख खानि सुक्ख क्या जानेत् । भोरे जीवों को ठगे ठंगनी प्रपंच अति ठाने तु ।। सुपति सहित हम शिवपुर वसि हैं जहां दृष्टि नहीं आने तू । त्रिय मुक्ति मनोहर सरेंगे जिसको कहा पहिचाने तू ।' सुमति समान नारि ना दूजी हित कारिणी जगमें भारी । जो शिव रमणी की . सहेली जाप्तम और नहीं नारी॥ ४ ॥कुमति कई हो रुष्ट भरे सुन दुष्ट कृतघ्नी मो संयोगा।पुष्ट भयातू इष्ट नाना विधिक भागेरस भोगावस्त्राभूपण पहल मनोहर सेज मुगंधादिक उपभोग पटरस पिंजन नारि संयोग हरे कामाविक रोगा।अव स्वप्ने

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