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ज्ञानानन्दरत्नाकर। वा बाजी केसे काम करो ॥ टेक ।। वा वानी का भेद न जाना नाम धराया वा बाजी । भस्म अंग में लगा शिर भद्र कराया बाबाजी ॥ वा बाजी किस को कहते क्यों नाम कहाया बावाजी । वा बानी के कहो लक्षण तन माया बाबाजी ।।
* शेर* कहा बैराग होता है किसे कहते है वैरागी । कहो वैराग के लक्षण कहाली आपकी लागी ॥ किसे पंचाग्नि कहते हैं जलाई किस लिये श्रागी | क्षमा संतोष तप क्या है किसे कहते है कहरागी !! वा वानी का भेद बता तव वावाजी विश्राम करो । वाबाजी को जान वाबाजी कसे कामझरो ॥ १ ॥ तुमतो न्वा कुछ नहीं दिया अब मैही हाल बतलाऊं सुनो | सवाल जो जो किये मैं उनका भेद सव गाऊं सुनो । वाजी तर्फ को कहते हैं सो दो प्रकार दरशाऊं सुनो । जो गृहवासी उन्हें या बाजी में समझाऊं सुनो ।
॥शेर __ करें जो प्रीति तन धन से रखें पशु बस्त्र असवारी । यगावे दास औरों को प्रगट चे जीव संसारी ॥ क्रोध छल लोभ मद ममता भये यश काम के भारी। ऐसे सब जीव या बाजी सुनों घर कान नरनारी ॥ ऐस ढोंगी साधु बने मत तिनको भुल प्रणाम करो। वाचाजी को जान वाचाजी केसे काम करो ॥२॥ गृह कुटुम्ब धन धान्य सवारी वस्त्रादिक से नेह तजे । क्रोध मान इन लोम ममता को त्याग प्रभु नाम भजे ॥ क्षमाशील संताप सत्य रच हृदय घार वैराग सजें । सई परीपह विविध तपधार देख रिपु काम लजें ॥
करें वशपंच इंद्रिन को यही पंचाग्नि का तपना | धरै निज ध्यान प्रात्म का जगत मुख जानके सपना ॥ वनस्पति आदि जीवो पर दया परणाम रख अ पना | कारें रखासदा तिनकी हृदय प्रभु नामको नपना ॥ ऐसे साधु वा वाजी है तिनकी सेवा बसु याम करो। वा बाजी को जान वा बाजी केसे कामकरो ॥३॥