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नानन्दरत्नाकर
जाली ॥ २ ॥ जाली कर्म थिति रूपी वनी तुप तोथी तुम्हारी प्रकृतिकृपाली कृपाली तुपको निम्न पशुमर निकट र व्याल औ मराली || मरालीफनपति सप्रेम रमते हृदय धार अनुभव की कलाली । कलाली पूर्ण स्वपर प्रकाशक प्रीति कुपति कुन्नटा से उठाली । बठाली निज सम्पति थाप कर में कभी दृष्टि धनपर न डाली || दाली है अर्जी पेशी में जिनवर ये नाश कीन मो हार्दि जाली ॥ ३ ॥ जानी मुक्ति लक्ष्मी परम पावन मनुज जन्म पाये की नफाली । नफाली अविनाशी सार पद की जीति मोड राजा की ध्वजाली ॥ ध्वजाली नयकी पाठो को इतके गुरु की नशीहत पूरी निभानी | निभाली शिक्षा गुरूकी दर में स्थिति न्नई इस नगमे निराली || निराली बिनती सुनो प्रभूजी नाथूराम जो चरण में डाली । डाली है श्रर्जी पेशी में जिनवर मे नाश कां ने मोहादि जानी ॥ ४ ॥
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* शिकस्तः वहर जिनेंद्र स्तुति १०
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हे मेरे स्वामी जिनेश नामी भवान्धि मे से निकाल करके | बनाओ सेवक हे नाथ अपना मोरचानि मम्हाल करके || टेक || तुपतो दयाकर गुण के सागर छाया विरदनग विशाल करके । कोई न तुमसा त्रिलोक अन्दर किमकी बताऊं मिशाल करके || जैसे अतुल वल का धारी केहर जांचे तिसे को शृगाल करके | वा विम्व रविका प्रवs दिन में को जांचे वा दीपमाल करके || अतुल गुणों के निधान प्रभुमी क्यों होवे वर्णन मो वालकरके । व नाथ सेवक हे नाथ अपना मोरक्षा कीजे सम्हाल करके ॥ १ ॥ त्रिलोक दृढे न कोई पाया शरण का दाता दगान करके । मिले सुदाता अव विश्व त्राता मैंटो असाता खयाल करके || जो दुःख देखा न तिसका लेखा वहू कहातक कमाल करके । हे विश्व ज्ञानी तुम्हें न छान इस्मे हरो विपदा पाल करके || सुयश तुम्हारा जगत् में भारा नये जगत् नीचा भालकरके | बनावो सेवक हे नाथ अपना मो रक्षाकीजै सम्हाल करके || २ || उदार तुम प्रभु स्वगुणके दाता तारे बहुत भाव निहाल करके । खलासकोने बहुतये प्राणी बंधे थे जो विधि के जाल करके || महारली ये आठो कर्म तिन राख्ने जगत्