Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 12
________________ ज्ञानानन्दरनाकर । पाम || मद्य मांसको सप्रेस सेवे जैसे दरिद्री शीत में घाम । माया लीन उगे दानों को फिर कुविसन में खोवे दाम ॥ मत्ति मानों की कर न संगति जाने बसे अविनाशी ठाम | मंगल करन हरनअघ प्राति घाता विधि दाता शिर घाम ॥ २ ॥ मात तात सुत भ्रान मित्र धन दासी दाम अर्द्धगी भाम । माने मोह वश इनको अपने वो वंचूल शठचाहे भाम ।। मेरी मेरी करता निशिदिन नहीं लहै चणभर विश्राम । मोत फिरशिरपर निशि बासर नहीं करे क्षणएक विराम ॥ महा मूह प्रभु नाम न जपता जिस्से हाय भविचल आराम । मंगल करन हरन अघ अार्ति पाता विधि दाता शिवधाम ॥ ३॥ मिथ्या मार्गचले श्राप शठ कर्मों को देता इल्जाम । मुन्न तत्व श्रद्धाण न करता इस्से अयोगति करे मुकाम ।। मानो सुधी यह शीख सुगरू की स्वपर भेद में रहो न खाम । मिले न फिर पर्याय मनुज की करो शुद्ध या से परणाम || मद पाठो को टारधार तर नाम प्रभु का नाथूराम । मंगल करन हरन अघ भाति पाता विधि दाता शिव धाम ॥ ४॥ * सिंहावलोकन शिकस्तः बहर जिनेन्द्र स्तुति ९ * जाली . पाठो मोहादि ये खन जगत् के नीपों पैपांसी दाली। डाली है अर्जी पेशी में जिनवरये नाश कीजे मोहादि नाली ।। टेक ।। जाली जलाके मुकति में जाके तुम तो कहाय त्रिलोक भाली । पाली न जगमें है ऐमा दशा कीनी बहुत फिरके देखा भाली । माती अनुपम उनी ने पूर्ण जिनने नले भक्ति माल घाली । घान्ली नशीहत थारी स्त्र उर में पूरी प्रतिज्ञा सुमति से पानी। पाली मुक्ति रानी नाहि क्षण में पोह पाप पल मे तोड़ डाली । डाली है अर्जी पेशी में जिनवर ये नाश कीजे गोहादि जाली ॥ १ ॥ जाली हैं आगे ये आदिही के इनके साथ काहू ना बफाली । बझाली वेशक उन्हीं ने स्वामी मिन्ने शक्वि स्वातम की सम्हाली ॥ सम्हाली रत्नत्रय भाप सम्पति कुमति , कुटिल हिरदे से निकाली निकाली सूरत पाठो पतन की नहीं रंच रिपु की शक्ति चाली ॥ चाली सुमति जिन के साथ आगे तिनके गले विश्व ज यल डाली । डाली है भनी पंशी में जिनवर थे नाश कीजे मोहादि

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