Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 11
________________ ज्ञानानन्दरनाकर । सुना नाग शुमजान तुम्हारा तारण भवोदधि नीर सनम । आशा वान भया तब से कुछ पाया मनको धीर सनम । तुपसा तारक पाय मिटी अब निश्चयकर भय भार सनम । पाशक की पागा पूरो सब माफकरो तकमीर सनम ॥ १ ॥ नित्य निगोद वप्ता अनादि तहां थावर पाय शरीर सनम । मरा श्वास मेबार अठारह बघा कर्म जंजीर सनम ॥ यावर भूजल तेज वनस्पति भाषी और सपीर सनम | ऐपे भ्रमन लई बस काया कंचन यथा फकीर सनम । मिला न तो भी पार मोदधि ऐसा अतट गहीर सनम | श्राशक की आशा पूरो सब माफकरो तासीर सनप ।। २ ।। फिर विकलत्रय अरु पंचद्रिय मन चिन रहा अधीर सनम | फिर तिर्यंच पंचेंद्रिय सेनी भयो बिनश तकदीर सनम ।। चघ पन्धन दुःख सहा वहा बहुमार रहा दिलगीर सनम । पुनःनके दुःख सहा पंच विधि जहां न कोई सीरसनम || ताड़न मारण आदि जहां ना वचनेकी तदवीर सनम । पाशक की श्राश पुरो सब माफ करो तकसीर सनम ॥१॥ नरनन पाय सुकन कुछ कर सुरभयो अपर क्लवीर सनम | फिर सम्यक्त विना मटको ना भवोदधि लयो.अखीर सनम || अव शुभ योग मिला श्रावक कुन रु तुप त्रिभुवन पीर सनम । शिक्षा मावुन से की शुचि अंतत्मि वीर सनम || नायूगम जिन मक्क मये अब जिन धन पाय अमीर सनम । भाशक की आशा पूगे सव माफ करो तकसीर सनम ॥ ४ ॥ *जिन भजन का उपदेश (म) की दुअंग ८* मन वचनकाय जपो निशि वासर चौवीसो जिन देवका नाम । मंगलकरन हरन अघ अात्ति घाता विधि दाता शिव घाम ॥ टेक ॥ मोर महा मट जगत में नटखट ताके पढ़ा यशात्म राम । पम्न विषय सुम्ब में निशि वासर नहीं खवर निज पाठो याम ।। मूढ कुमति से प्रीति लगाकर मित्र बनाये क्रोधरु काम । महत्व प्राना भूल गया शठ जाना रूप निज हाइरुचाम ॥ मोद्भक्ति करेना जहमति नासे मिले अनुपम शिव भाम | मंगल करन हरन भय आति घाता विधि दाता शिवमान ।। १ मदन के वश रस विषय को चाहै दाई सुगुण निज मूह तमाम | माने ना शिक्षा गुरुजन की दुर्गति को करता न्या.

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