Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 20
________________ ज्ञानानन्दात्नाकर। चेत नहीं पछि पछताना होगा ।। टेक ॥ वीता काल अन्त भ्रपत अब तो थिर थाना होगा। नहीं लख चारासीयोनि में फिर फिर दुःख पाना होगा। तीन लोक में क्षेत्र न ऐमा जाहि न ते छाना होगा | अबभी ना धाका श्र गत को तुझा नादाना होगा | पंच परावर्तन कर करके नाहक दीवाना होगा । क्यों भला फिरता चेत नहीं पीछे पछताना होगा ॥ १ ॥ अवत योग कपाय पाय मिथ्यात्व तू गर्वाना होगा । तो भव मागर दूर के बहु गोते साना होगा | प चारित्र परीपह तप गहु निश्चय शिवराना होगा तमसुक्ख अनन्ते भोग नित यहां न फिर पाना होगा । गुरु मिक्षा पर ध्यान न दे तो खराब खाना होगा । क्यों जा फिरता चेन नहीं पछि पछ ताना होगा ॥ २ ॥ सुन सम्मति सपने मत जाने इन्हें छोड़ जाना होगा। पल एक न ठहरे भये थिति पूरी सब विराना होगा | तार से त्याग गये तो ऐमा कौन स्याना होगा | जगको पिर माने जहां नित काल बदन दाना होगा ।। अरे मूह निर्यच नर्क दुःख क्या तू विसराना होगा । क्यों भूना फिरता चेन नहीं पीछे पछताना होगा ॥३॥ नरगति के क्षण भंगुर मुखको तुने विरमाना होगा । तो तुझसा मूर्ख कौन जानिज स्वभाव हाना होगा ॥ सपने हाथ कुल्हाड़ी लेकर अपना पद भाना होगा । ता कोन विवेकी ऐसेको वन लाता दाना होगा ॥ नाथराम शिव सुख चाहो तो ब्रह्म मुयश गाना होगा क्यों भूला फिरता चेतनहीं पीछे पचताना होगा।॥ ४ ॥ परमात्मा स्वरूप में १९॥ हमें है जाना वहां तलक जिस जगह हमारा जाना है। उसी की खातर वेद मथ मथकर अहो निशि छाना है ।। टेक ॥ उसजाना का रूप अनुपग देख भानु शर्माना है । कोटि काम का रूप एकत्र न तास समाना है। लोक शिखर के अन विराने कहीं न आना जाना है । निश्चल आसन ज्ञान का पिड स्वग्स कर सानाह।।जाति अपेक्षा सब सिद्धों को एकब्रह्मकर माना है। उसी की खा तर चेद गथमय कर अहा निशिचाना है ॥ १ ॥ त्रिनगत में चर अचर पदार्थ जिसे न कोई छाना है । सर्व द्रव्य का द्रमगुण पर्यय युगपत नाना है। तीर्थ

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