Book Title: Gyanand Ratnakar Author(s): Nathuram Munshi Publisher: Lala Bhagvandas Jain View full book textPage 8
________________ ज्ञानानन्दनत्नाकर। मिले रमें परनारि जाय तह मारा है। सज्जन श्रवण सुनत घिण करत खल मणने अखत्यारा है ॥ २ ॥ लखपती का बेटा भी जुएमें हारा चोरी करता है। प्रथम चुरावे घरका धन ना मिले तो परका हरताहै । वस्त्राभरण लगाई और बच्चों को दाव पर धरता है । कुन चन कष्ट यहां सहके मरके दुर्गति में परता है ॥ खेलनकी क्या बात तमाशा भी इसका नाकारा है। सज्जन श्रवण सुनत घिण करते खलगणने अखत्यारा॥३॥राजानल अरु भूष युधिष्ठिर राज पाट गृह हारेसव । वस्त्राभरण रहित भटके वन बनमें मारे मारे सब ।। राजों की यह दशाभई तो फिर क्या रंक विचारे सब ॥ बुद्धिमान लखके हितकारी मानों वचन हमारे सब । मन मतंग वशकरो तमो यह जुधा महा अघ भारा है ॥ स. ज्जन श्रवण सुनत घिण करते खल गणने अखत्यारा है ॥४॥ होयदिवाली खुलें दिवाले बहुतों के यह खेळ जुश्रा । कोई तास सुरही चौपड़ कोई खेले नक्की और दुआ ॥ बुद्धिमान लड्डू पड़े खाजे ताजे अरु माल पमा । खांय मनाचे ग्खुशी दिवाली का उनके त्योहार हुआ ।। नाथूराम नर पशु विवेक विन जिन यह जुआ पसारा हैं । सज्जन अवण सुनत घिण करते खल गण ने अखत्यारा ॥ ५॥ शाखी* कलिकाल में पाखंड वाढा साधु बहु कामी भये । सुर शासकी तनाश शठ दुर्गति के पयगामी भये।।परनारि संग कुशीन कर वन योगतज धामी भये । विद्या के बल रचान्ध झूठे लोगों में नामी भये ॥ ___ दौड़ साधु बन बुरे काम करते । नहीं खल दुर्गति से डरते ॥ झूठे लिख लिख पुराण भरते । दोष सत्पुरुषों पर घरते ।। नाथूराम कहै सुनो गाई । खलों का मिथ्या चतुराई । *कृष्णादि की६* देखो दुष्टता दुष्टों की अपराध बड़ों शिरधरते । काम क्रोध मद मोह लोभ वश पाए निद्य कार्य करते । टेक ।। अति कामी अरु साधु कहावें कुशीलPage Navigation
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