Book Title: Gyanand Ratnakar Author(s): Nathuram Munshi Publisher: Lala Bhagvandas Jain View full book textPage 7
________________ ज्ञानानन्दनत्नाकर शी फिर गहुको जीत चानवर निर्विकार निर ची फिकीन दर २५ नप ने एकाकी लज भीर फिर निरालंय लिय हरि सग निवान गरि बन धीर फिर । तारण तरण हरण अघ जन के श्री गुरु गुण गम्भी कि । पर वायके कान भी पुनि राज वन वन पीर फि । १ । ग्रोवर शिया तप तप ते प्यास सदन विन नीर फिरें । वर्षा तरुनल रहन मन सादिक सी नग पीर फिर । शीत काल में नियमात मा सरिता ती फि । विशन निन मदत परीपद स्वप्नना दिलगीर फिरें। महम मन गुण पातन दाप रहित हग शीर फिरें । पर रबराय के काज सी युनियन ने वन वीर फिरें ॥ २॥ कर्य महारिपु नियर जग तिन दश जान प्रधीर फिर । तड़फड़ाय पर छूटननाही बन्धे गोहनी फिरें । नाशन गनिए ज्ञान धननार फिर । ध्यानखंग से माशतभरि मग महनगीर फिर । जाति जापनिज मेन रक्षा करुणा सिंधु गहीर गि पर खामकाज श्री मनिराज बने बनवीर फिरें ॥३॥ संसारी जिय गग शमय गिनन नकदीर फिर । परशुरु कर्म करे सरक्षण २ ज्यों घन मानमार फिरें। इप शाम नमनाम जगन का निधन पाय समीर फिरें। निपय भाग कागजी बना पने जगति के पार फिरें । नाथूराम जिनभक्त करत या भवसागर के नार फिर । पर स्वार्थ के कान श्रीमुनिराज बने वन बार फि॥४॥ ॥ जुना निषेध को ५॥ मय अपगुण का मून जुमा यह अधम जनों को ज्याग है । सज्जन श्रवण सुजन घिण करने बाल गणने अखत्यारा | टेक || सतसंगति विश्वासधर्म धन राम्प शुद्धता सुखकी आस । चण्ठा गुपति प्रतिष्ठा गौरव नीति मीति को करता नाश । बन्धन छलकपट क्रोध भ्रम खेद शोक दुर्मति का धाम । कलह विवाद विरोध शत्रुता होय जुएसे पंदा खास ॥ जपतप संयम शील धर्म सरुकाटन पच कुटाग है। मजन श्रवण सुनत्त घिण करते खन गणने सम्वत्यारा है १॥ दाय एमें जीत पायधन संतका जाचे वेश्याघर । पियें प्रेपयश शराव खावे मांस छिपा लोगों की नजर ॥ हारे तो चोरी करते पड़ते है कैद ज्वारी अ. कसर । मारे लोभ वश बच्ची को तिनका उतार लेते जेवर ॥ जो वेश्या नाPage Navigation
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