Book Title: Gyanand Ratnakar
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Lala Bhagvandas Jain

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Page 5
________________ ज्ञानानन्दरत्नाकर। कार्य सिद्धि कीजैम ईश । युगल परण में नाऊं शीश ॥ ॥दोहा॥ हाथजोड़ विनती करों नाथ गरीब निवान । लाज, रहेजो दासकी कीजै नही इलाज || नाथुराम की अर्ज यही करदो वसुअरिका नाशप्रभू । दाजै मुक्तिरसाल काट विधिजाल रखो निजपास प्रभू ।। ४ ।। ॥जिनप्रतिमा स्तुति ॥ Rokaarध्यानारूढ़ वाचगगी छवि परम दिगम्बर श्रीजिनेश। महापवित्र मूर्तिश्रीजिन की त्रिभुवन पनि पूनते होश ।। टेक ।। जैसे रागकामी को बढ़ाये हावगाव युन त्रियका चित्र { भय घिण सपने देखत मूर्ति सिंह मलेच्छ यहाअपवित्र ॥ तैसे भाव काय बढ़ावे परम दिगम्बर मूर्ति विचित्र । क्षमाशील सतोप होय हड़ देखत श्रीजिन मुनि पवित्र ॥ त्या कृत्रिम मूर्ति पूज्य सब नहीं परिगृह जिनके लेश । महा पवित्रमूर्ति श्रीजिनकी त्रिभुवन पनि पूनो इमेश ।। १ ।। चतुर्निकाय देवना खगपति जिन मूर्तिको करें प्रणाम ! मनच काय भाव श्रद्धायुत वन्दत प्रभुचवि आजिन धाम ॥ ऐमी मूर्ति पूज्य श्रीजिन की यहा पुरुषवन्दे वसुयाम तिसकी को शठ निन्दा करते अपराधी तिनका मुइ श्याम ॥ जिनवर तुल्य मूर्ति श्रीनिन की यही पुराणों में आदेश। महा पवित्र मूर्ति श्रीजिनकी त्रिभुवन पनि पूजते हमेश ॥ २॥ अथग कालकी यह विचित्र गति बढ़े दुष्ट पापी स्थूल । मिथ्या ग्रन्थ धनाय पापमय धर्म ग्रंथों का कारत मूल ॥ नैनी हो जिनवचन न माने हैं मुम्बार उनके में धून निन मूर्तिकी निन्दा करते आम्रकार्य बोधते वंचून ।। गहा नर्क की सौ वेदना परभत्र में ऐसे मूढेश ! महा पवित्र मूर्ति श्रीजिनकी त्रिभुवन पति पूजते हमेश ।। ३ ।। है प्रत्यक्ष मूर्ति जड़ सवही किन्तु पूज्य जिन का प्राकार । राग द्वैप परिगृह ना जिनके स॥ शील लनण युन सार ।। वस्त्र शस्त्र प्राभरण विलेपन कौतूहल नाना शृगार ! काम क्रोध लक्षण युत मूर्ति सो अवश्य पूजना असार । नाथूराम को जडतो शानभी किन्तु पूज्य निनरचन विशेष । महर पवित्र पूर्ति श्री जिनकी निभुवन पति पूनते हमेश ।। ४ ।।

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