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ज्ञान- प्रदीपिका |
भूत, भविष्य, वर्तमान, शुभाशुभ दृष्टि, पाँच मार्ग, चार केन्द्र, बलाबल, आरूढ़, छत्र, वर्ग, उदय बल, अस्तबल, क्षेत्र, दृष्टि, नर, नारी, नपुंसक, वर्ण, मृग तथा नर आदि रूप किरण, योजन. आयु, रस, उदय आदि की परीक्षा करके बुद्धिमान को फल कहना चाहिये ।
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चरस्थिरोभयान् राशीन् तत्प्रदेशस्थलानि च । निशादिवस संध्याव कालदेशस्वभावतः ॥७॥
चर, स्थिर, द्विस्वभाव राशियाँ, उनके प्रदेश, दिन, रात, सन्ध्या का कालादेश, राशियों
का स्वभाव; -
धातुमूलं च जीवं च नष्टं मुष्टिं च चिन्तनम् । लाभालाभं गदं मृत्युं भुक्तं स्वप्नं च शाकुनम् ॥८॥
धातु, मूल, जीव, नष्ट, मुष्टि, लाभ, हानि, राग, मृत्यु, भोजन, शयन और शकुन सम्बन्धी प्रश्न,
जातकर्मायुधं शल्य कोपं सेनागमं तथा ।
सरिदागमनं वृष्टिमध्यं नौसिद्धिमादितः ॥६॥
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जन्म, कर्म, अस्त्र, शल्य (हड्डी), कोप, सेना का आगमन, नदियों की बाढ़, वर्षा, अवर्षण, नौकासिद्धि आदि,
क्रमेण कथयिष्यामि शास्त्रे ज्ञानप्रदां पके ।
इन बातों को इस ज्ञानप्रदीपक शास्त्र में क्रमशः कहूंगा ।
इत्युपोद्घातकाण्ड:
अथ वक्ष्ये विशेषेण ग्रहाणां मित्रनिर्णयम् ॥ १० ॥
अब ग्रहोंकी मैत्री का वर्णन करेंगे ।
भौमस्य मित्रे शुक्रज्ञौ भृगोर्ज्ञारा र्किमंत्रिणः । आदित्यस्य गुरुर्मित्रं शनैर्विदुगुरुभार्गवाः ॥ १ ॥ भास्करेण विना सर्वे बुधस्य सुहृदस्तथा । चन्द्रस्य मित्र जीवज्ञौ मित्रवर्गमुदाहृतम् ॥२॥
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