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ज्ञानप्रदीपिका ।
उदद्यादित्रिकान् खेटाः पश्यन्त्युच्चर्क्षगा यदि । शत्रुर्मित्रत्वमायाति रिपुः पश्यति चेद्रिपुम् ||२||
यदि उच्च ग्रह लग्न द्वितीय और तृतीय को देखते हों तो शत्रु भी मित्र हो जाता है। उदयं छत्रलग्नं च रिपुः पश्यति वा युतम् । आयुर्हानिः रिपुस्थानं गतश्चेद् बन्धनं भवेत् ||३||
यदि शत्रु ग्रह अपने शत्रु को देखता हो अथवा, लग्नेश का शत्रु लग्न या छत्र से युत या दृष्ट हो तो आयु को हानि होगी। रिपुस्थान गत होने से बन्धन भी होता है ।
गतो नायाति नष्टं चेद्र हिरेव गतिं वदेत् । गलवच्चन्द्रजीवाभ्यां खेन्देषु सहितेषु च ॥४॥
अथवा ( उसी परिस्थिति में ) गया हुआ धन नहीं लोटता अथवा बाहर, की ही गति करनी चाहिये । पाप ग्रह से युक्त बन्द्रमा और वृहस्पति का यह फल बताना है ।
नष्टप्रश् न नष्टं स्यात् मृत्युप्रश्ने न नश्यति । पापदृष्टियुते खेन्द्रे भानुयुक्त विपर्ययः ॥ ५॥
खोये
हुए प्रश्न में खोया हुआ नहीं कहना एवं मृत्यु के प्रश्न में भी मरता नहीं। यदि पापग्रह का दृष्टियोग हो तो यह फल होता है, किन्तु सूर्य के दृष्टियोग में इसका उल्टा होता है।
शत्रोरागमनं नास्ति चतुर्थे पापसंयुते ।
Caterer सौम्यः स्थितश्चेत्सर्वकार्यत् ||६||
यदि लग्न से चौथे स्थान में पाप ग्रह बैठे हों तो शत्रु का आगमन नहीं होता एवं दशम और एकादश में शुभ ग्रह स्थित होतो सब कामों को सिद्ध करता
है
faruise प्रश्ने त रोगिणां मरणं भवेत । तू गमनं विद्यते प्रर्नास्तीति कथयेद् बुधः ||७|| प्रारब्धकार्यहानिश्च धनस्यायतिरोहिता ।
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पूर्वोक्त स्थिति में विपीड़ा हो तो रोगो का मरण हो जाता है और प्रश्नकर्ता की यात्रा नहीं होती तथा प्रारम्भ किये हुए कार्य की हानि तथा धन की हानि होती है ऐसा कहा गया है।