________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ज्ञानप्रदोपिका।
३६
लग्न में जो नक्षत्र हो उसी के अनुसार इन अंगों में रोग बताना चाहिये। इसी प्रकार शारीर नक्षत्र नक्षत्र के पर से नष्ट द्रव्य भी बनाना चाहिये ।
त्रिकोणलग्नदशमे शुभश्चेद् व्याधयो नहि ||३३|| तेषु नीचारियुक्तेषु व्यधि-पीड़ा भवेन्नृणां ।
पंचम नवम, लग्न और दशम में यदि शुभ ग्रह हों तो व्याधि नहीं होती और पाप या शत्रु ग्रह हों तो होती है
1
इति रोगकाण्डः
अथ मरणकाण्डः
मरणस्य विधानानि ज्ञातव्यानि मनीषिभिः ।
वृषस्य वृषभच्छत्रं सिंहच्छत्रं हरेर्भवेत् ॥ १ ॥ अलिनो वृश्चिकच्छवं कुंभच्छत्र घटस्य च ।
मरण का विधान भी विद्वानों को जानना चाहिये। वृष का छत्र वृष, सिंह का सिंह, वृश्चिक का वृश्चिक, और कुंभ का छत्र कुंभ है ।
उच्चस्थानमिति ज्ञात्वा उच्चः स्यादुदये यदि ॥ २ ॥ मरणं न भवेत्तस्य रोगिणो नात्र संशयः ।
यदि प्रश्नकाल में लग्न (लग्नेश ? ) उच्च का हो तो रोगी की मृत्यु नहीं हुई । तुलायाः कार्मुकछत्र नोचमृत्यु विपर्यये ॥३॥ मेषस्य मिथुनच्छत्र नीचमृत्यु विपर्यये । नकस्य मिथुनच्छत्र' नीचमृत्युविपर्यये ॥४॥ कन्याछत्र कुलीरस्य नीचमृत्यु विपर्यये ।
तुला का धन, मेष का मिथुन, मकर का मिथुन और कन्या का कर्क छत्र होता है किन्तु नीच मृत्युविपर्य में ही उसका शनि काम करता 含 1
For Private and Personal Use Only