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( १२ )
करालवक्तवैरूपो स नरस्तस्करः स्मृतः । बकवानरवक्तश्च धनहीनः प्रकीर्तितः ॥ ३६ ॥
यदि मुंह चन्द्रमा के बिम्ब जैसा हो तो धर्मशील, घोड़े के मुंह जैसा हो तो दुःखो और दरिद्र, भयानक तथा रूखा हो तो बोर, बगुला या बानर जैसा हो तो मनुष्य निर्धन होता है।
यस्य गंडस्थलौ पूर्णौ पदमपत्रसमप्रभौ ।
कृषिभोगी भवेत् सोऽपि धनवान् मानवान् पुमान् । ४०||
जिसका गंडस्थल भरा हुआ तथा कमल के पत्ते के समान हों वह पुरुष धन तथा मान के सहित कृषिजीवी होता है।
सिंहव्याघ्रगजेन्द्राणां कपालसदृशं भवेत् । भोगवन्तो नराश्चैव सर्वदक्षा विदुर्बुधाः ॥ ४१ ॥
सिंह, बाघ, हाथी आदि के सदृश कपाल वाले पुरुष भोगी, चतुर ज्ञानी और श्रेष्ठ होते हैं ।
रक्ताधरो नृपो यो स्थलोष्ठो न प्रशस्यते ।
शुष्काधरो भवेत्तस्य नुः सुसौभाग्यदायिनः ॥ ४२ ॥
लाल होठों वाला राजा होता है, मोधा होंठ अच्छा नहीं होता शुष्क अधर सौभाग्य के सूचक है ।
कुंदकुसुमसंकाशैः दशनैर्भोगभागितः ।
यावज्जीवेत् धनं सौख्यं भगवान् स नरो भवेत् ॥ ४३ ॥
कुन्द की कोई के समान शुभ्र दांतों वाला मनुष्य जोवन भर सुख, भोग और धन आदि से युक्त रहता हैं 1 रुक्षपाण्डुरदन्ताश्च ते क्षुधानित्यपीडिताः हस्तिदन्ता महादन्ता स्निग्धदन्ताः गुणान्विताः ॥ ४४ ॥
रूखे और पोले दांतों वाले मनुष्य सदा भूख से सताये हुए होते हैं। हाथी जैसे दांत वाले, बड़े बड़े दांतो वाले तथा चिकने दाँतों वाले मनुष्य गुणी होते हैं । द्वात्रिंशद्दनै राजा एकत्रिंशच्च भोगवान ।
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