________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
. ( ११ )
जिसके अंगूठे के पास वाली अंगुली पृथ्वी को न छुए वह स्त्री कुमारी तथा यौवनावा में दूसरे पुरुषों के साथ व्यभिचार करती है, इसमें सन्देह नहीं ।
पादमध्यमिका चैव यस्या गच्छति उन्नतिम् ।
वामहस्ते ध्रुवं जारं दक्षिणे च पतिं तथा ॥ २३ ॥
जिसके पैर की बिचली अंगुली पृथ्वी से ऊपर रहे वह स्त्री, निश्चय ही, बांये हाथ में जार को और दाहिने में पति को लिये रहती है।
उन्नता पिण्डिता चैव विरलांगुलिरोमशा ।
स्थूलहस्ता च या नारी दासीत्वमुपगच्छति ॥ २४ ॥
उंची, सिमटी हुई विरल अंगुलियों वाली, रोयें वालो तथा छोटे हाथों वाली औरत दासी होती है।
अश्वत्थपत्र संकाशं भगं यस्या भवेत्सदा ।
सा कन्या राजपत्नीत्वं लभते नात्र संशयः ॥ २५ ॥
जिस स्त्री का जननेन्द्रिय पीपल के पत्ते के समान हो वह पटरानी पद को प्राप्त होती है - इसमें सन्देह नहीं ।
पृष्ठावर्ता च या नारी नाभिश्चापि विशेषतः ।
भगं चापि विनिर्दिष्टा प्रसवश्रीर्विनिर्दिशेत् ॥ २६ ॥ (१) मण्डुककुक्षिका नारी न्यग्रोधपरिमण्डला | एकं जनयते पुत्रं सोऽपि राजा भविष्यति ॥ २७ ॥
मेढ़क के समान कोंख वाली तथा वर के पत्ते के समान मण्डल वाली स्त्री एक ही पुत्र पैदा करती हैं सोभी राजा ।
स्थूला यस्याः करांगुल्यः हस्तपादौ च कोमलौ । रक्तांगानि नखाश्चैव सा नारी सुखमेधते ॥ २८ ॥
जिस स्त्री के हाथ की अंगुलियाँ छोटी हों, हाथ पैर कोमल हों, शरीर और नख से खून झलकता हो वह स्त्री सुख पाती है ।
कृष्णजिह्वा च लंबोष्ठी पिंगलाक्षी खरस्वरा । दशमासैः पतिं हन्यात्तां नारीं परिवर्जयेत् ॥ २६ ॥
For Private and Personal Use Only