Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 158
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मिनी बहकेशी स्यादल्पकेशी च हस्तिनी। शंखिनी दीर्घकेशी च, वक्रकेशी च चित्रिणी ॥४७॥ बहुत केशों घाली स्त्री को पद्मिनी, कम केशोवाली को हस्तिनो, लंबे केशों वाली नी, टेढ़े मेढ़े केशों वाली को चित्रिणी स्त्री कहते हैं। वृत्तस्तनौ च पदमिन्याः हस्तिनी विकटस्तनी । दीर्घस्तनौ च शंखिन्याः चित्रिणी च समस्तनी ॥४८॥ पद्मिनी के स्तन गोल, हस्तिनी के विकट, शंखिनी के लंबे, और चित्रिणी के समान पदमिनी दन्त-शोभा च उन्नता चैव हस्तिनी। शंखिनी दीर्घदन्ता च समदन्ता च चित्रिणी ॥४६॥ पद्मिनी के दांत शोभामय -हस्तिनी के ऊंचे, शंखिनी के लंबे और वित्रिणी के समान होते हैं। पदिमनी हंसशब्दा च हस्तिनी च गजस्वरो । शंखिनी रूक्षशब्दा च काकशब्दा च चित्रिणी ॥५०॥ पद्मिनी का शब्द हंस के समान, हस्तिनो, का हाथी के समान, शंखिनी का रूखा और चित्रिणी का शब्द कौआ के समान होता है। पद्मिनी पदमगन्धा च नयगन्धा च हस्तिनी।। शंखिनी क्षारगन्धा च शुन्यगन्धा च चित्रिणा ॥ पद्मगन्ध से पद्मिनो, मद्यगन्ध से हस्तिनी, खारी गन्ध से शंखिनी एवं शून्य गन्ध से चित्रिणी जानी जाती है। शत सामुद्रिकाशास्त्रे स्त्रीलक्षणकथनं नाम तृतीयं पर्व समाप्तम् । For Private and Personal Use Only

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