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( २२ ) शंखपद्मयवच्छत्रमालामत्स्यध्वजा च या।
पादयोर्वा भवेद्यत्र राजपत्नी भविष्यति ॥४१॥ जिस स्त्री के दोनों पैर में शंख, पद्म, जौ, छत्र, माला, मछली, ध्वजा या वृक्ष का चिह्न है वह राजपत्नी होगी।
मार्जाराक्षी पिंगलाक्षी विषकन्येति कीर्तिता ।
सुवर्णपिंगलाक्षी च दुःखिनीति परे जगुः ॥४२॥ बिल्ली की तरह पिङ्गलवर्ण की आंखों वाली स्त्री को 'विषकन्या' कहा गया है। पर, सोने के रंग के समान पिंगलनेत्रा स्त्री दुःखिनी होती है—ऐसा भी किसी आचार्य का मत है।
पृष्ठावर्ता पतिं हन्यात् नाभ्यावर्ता पतिव्रता । .. कल्यावर्ता तु स्वच्छन्दा स्कन्धावर्ताऽर्थभागिनी ॥४३॥
पीठ की भंवरी वाली स्त्री पति को मारने वाली, नाभि की भंवरी वाली स्त्री पतिव्रता, कमर की भंवरी वाली स्वच्छन्दनारिणी और कन्धे की भवरी वाली धनी होती हैं ।
मध्यांगुलिमणिबन्धनोर्ध्वरेखा करांगुलिम् । वामहस्ते गता यस्याः सा नारी सुखमेधते ।४४॥ बाँए हाथ की कलाई से विचली अंगुली तक जाने वाली रेखा, जिसके हाथ में होती है, वह स्त्रो सुख प्राप्त करती हैं।
अरेखा बहुरेखा च यस्याः करतले भवेत् ।
तस्या अल्पायुरित्युक्तं दुःखिता सा न संशयः ॥४५॥ जिस स्त्रो की हथेली में बहुत कम रेखायें या बहुत रेखायें हो वह निःसन्देह थोड़े दिन नियेगी और दुःखी रहेगी।
भगोऽश्वखुरवद् छोयो विस्तीणं जघनं भवेत् ।
सा कन्या रतिपत्नी स्यात्सामुद्रवचनं यथा ॥४६॥ जिस कन्या का जननेन्द्रिय घोड़े के खुर के समान हो और जिसका जघन स्थान (घुटने के ऊपर का भाग) चौड़ा हो वह साक्षात् रति के समान होगी-ऐसा इस शास्त्र का बचन है।
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