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( १८ )
जिसकी अनामिका अंगुलो पृथ्वो को नहीं छूती ऊपर ही रहती है उस स्त्री के पति का शोघ्र ही नाश होता है और वह स्वयं नष्ट हो जाती है।
यस्याः प्रशस्तमानो यो ह्यावर्तो जायते मुखे ।
पुरुषत्रितयं हत्वा चतुर्थे जायते सुखम् ॥१७॥ जिसके मुख पर सुन्दर आवर्त (भंवरी ) रहता हैं वह तीन पति को नष्ट कर चौथी शादी करती है तब सुख पाती है।
उद्वाहे पिंडिता नारी रोमराजि-विराजिता।
अपि राजकुले जाता दासीत्वमुपगच्छति ॥ १८ ॥ रोये से भरी हुई स्त्री यदि राजकुल में भी उत्पन्न हो तो विवाहित होने पर वह दासी की तरह मोरी मारी फिरती हैं।
स्तनयोःस्तवके चैव रोमराजिविराजते ।
वर्जयेत्तादृशीं कन्यां सामुद्रवचनं यथा ॥१६॥ जिस स्त्री के दोनों स्तनों के चारो ओर रोये हो उसे इस शास्त्र के कथनानुसार, छोड़ देना चाहिये।
विवादशीलां स्वयमर्थचारिणी परानुकूलां बहुपापपाकिनीम् । आकन्दिनीं चान्यगृहप्रवेशिनीं त्यजेत्तुभार्या दशपुत्रमातरं ॥२०॥ लड़ने वाली, अपने मन की चलने वाली, दूसरे के अनुकूल रहने वाली, अनेक पाप कारिणी, रोने वाली, दूसरे के घर में घुसने वाली स्त्री अगर दस लड़कों की मां भी हो तो भी उसे छोड़ देना चाहिये।
यस्यास्त्रीणि प्रलंबानि ललाटमदरं कटिः ।
सा नारी मातुलं हन्ति श्वसुरं देवरं पतिम् ॥ २१ ॥ जिसके ललाट, पेट और कमर ये तीन अंग लंबे हों वह स्त्री मामा, ससुर, देवर और पति को मारने वाली होती है।
यस्याः प्रादेशिनी शश्वत् भूमौ न स्पृश्यते यदि। कुमारी रमते जारैः यौवनै नात्र संशयः ॥ २२ ॥
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