Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

View full book text
Previous | Next

Page 151
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्णचन्द्रमुखीं कन्यां बालसूर्यसमप्रभाम् । विशालनेत्रां रक्तोष्ठी तां कन्यां वरयेद बुधः ॥४॥ पूर्णचन्द्र के समान मुंहवाली, सबेरे के उगते हुए सूर्य के समान कान्ति बाली, बड़ी आँखों वाली और लाल होंठोवाली कन्या से विवाह करना चाहिये। अंकुशं कुण्डलं माला यस्याः करतले भवेत् । योग्यं जनयते नारी सुपुत्रं पृथिवोपतिम् ।।५।। जिस स्त्री की हथेली में अङ्कश, कुण्डल या माला का चिन्ह हो वह राजा होने वाले योग्य सुपुत्र को पैदा करती है। यस्याः करतले रेखा प्राकारांस्तोरणं तथा । अपि दास-कुले जाता राजपत्नी भविष्यति ॥६॥ जिस स्त्री के हाथ में प्राकार या तोरण का चिन्ह हो यदि दास कुल में भी उत्पन्न हो, तो भी पटरानो होगी। यस्याः संकुचितं केशं मुखं च परिमण्डलम् । नाभिश्च दक्षिणावती सा नारी रति-भामिनी ॥७॥ जिस स्त्री के केश धुंघराले हों, मुख गोला हो, नाभी दाहनी ओर घुमी हुई हो, वह स्त्री रति के समान हैं ऐसा समझना चाहिये । यस्याः समतलौ पादौ भूमौ हि सुप्रतिष्ठितौ। रतिलक्षणसम्पन्ना सा कन्या सुखमेधते ॥८॥ जिसके चरण समतल हों और भूमि पर अच्छी तरह पड़ते हों, (अर्थात् कोई उंगली आदि पृथ्वी को छूने से रह न जाती हों) बह रतिलक्षण से सम्पन्न कन्या सुख पाती हैं। पीनस्तना च पीनोष्ठी पीनकुक्षी सुमध्यमा। प्रीतिभोगमवाप्नोति पुत्रश्च सह वर्धते ॥६॥ पीन ( मोटे) स्तन कोख और होठवाली तथा सुन्दर कटिवाली स्त्री प्रोति भो भोग पातो हुई पुत्रों के साथ बढ़ती है। For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159