Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 150
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अकुशं कंडलं चक्र यस्य पाणितले भवेत् । विरलं मधुरं स्निग्धं तस्य राज्यं विनिर्दिशेत् ॥५६॥ जिसकी हथेली में भकुश, कुडल या चक्र हों उसको निराले और उत्तम राज्य का पाने वाला बताना चाहिये। इति पुरुषलक्षण नाम द्वितीयं पर्व ॥२॥ अथ स्त्रीलक्षणम् प्रणम्य परमानन्दं सर्वज्ञं स्वामिनं जिनम् । सामुद्रिकं प्रवक्ष्यामि स्त्रोणामपि शुभाशुभम् ॥१॥ परम आनन्द मय, सर्वज्ञ, श्री स्वामी जिनेश्वर को प्रणाम करके स्त्रियों के शुभाशुभ को बताने वाले सामुद्रिक शास्त्र को कहता हूं। कीदृशीं बरयेत्कन्यां कीदृशीं च विवर्जयेत् । किंचित्कुलस्य नारीणां लक्षणं वक्त मर्हसि ॥२॥ कैसी कन्या का वरण करना चाहिये, कैसी का त्याग करना चाहिये, कुलत्रियों का कुछ लक्षण आप कह सकते हैं। कृषोदरी च विम्बोष्ठी दीर्घकेशी च या भवेत् । दीर्घमायुः समाप्नोति धनधान्यविवद्धि नो ॥३॥ जो स्त्री कृशोदरी ( कमर की पतली ), विवफल के समान अधरोंवाली और लंबे लंबे केशों वाली होती है वह धन्यधान्य को बढ़ानेवाली होती है और बहुत दिनों तक जीती For Private and Personal Use Only

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