Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 148
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिशंदन्ता नरा ये च ते भवन्ति सुभोगिनः ॥ ४५ ॥ एकोनत्रिंशदशनैः पुरुषाः दुःखजीविनः ।। ३२ दाँतों वाला पुरुष राजा, ३१ दाँतों घाला सुखी, ३० दाँतों वाला भोगी और २६ दांतो वाला मनुष्य दुःखी होता है । कृष्णा जिह्वा भवेद्य षां ते नरा दुःखजीविनः ॥ ४६॥ श्यामजिह्वो नरो यः स्यात्स भवेत् पापकारकः । स्थूलजिह्वा प्रधातारो नराः परुषभाषिणः ॥ ४७ ॥ श्वेतजिह्वा नरा ये च शौचाचारसमन्विताः । पद्मपत्रसमा ये तु भोगवनमिष्टभोजनाः ॥ ४८ ॥ कालो जीभ वाले दुःखी, सांवली ( हल्की कालिमामयो ) जीभ वाले पापी, मोटी जीभ वाले परुष ( कड़ा ) बोलने वाले सफेद जीभ वाले पवित्र आचार शील, तथा कमल पत्र के समान चिकनी जोभ वाले मनुष्य भोगी तथा मिष्ट पदार्थ खाने वाले होते हैं। किंचित्ताम्र तथा स्निग्धं रक्तं यस्य च दृश्यते । सर्वविद्यासु चातुर्य पुरुषस्य न संशयः ॥ ४६ ॥ जिसकी जीभ कुछ लालिमा के साथ चिकनाई भी लिये हो वह पुरुष निःसन्देह सब विद्याओं में चतुर होता है। कृष्णतालुनरा ये च संभवं कुलनाशम् । पद्मपत्रसमं तालु स नरो भूपतिर्भवेत् ॥ ५० ॥ काले तालु वाला पुरुष कुल का नाशक तथा कमल-पत्र के समान तालु वाला राजा होता है। श्वेततालुनरा ये च धनवंतो भवन्ति ते। जिन मनुष्यों का तालु सफेद रंग का होवे धनवान होते हैं। हयस्वरनरा ये च धनधान्यसुभोगिनः ॥५१॥ मेघगम्भीरनिर्घोषो भृगाणां च विशेषतः । ते भवन्ति नरा नित्यं भोगवन्तो धनेश्वराः ॥५२॥ For Private and Personal Use Only

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