Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 152
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्णा श्यामा च या नारी स्निग्धा चम्पकसंनिभा । स्निग्धचंदनसंयुक्ता सा नारी सुखमेधते ॥१०॥ कृष्णवर्ण की श्यामा स्त्री ( जो शीतकाल में उष्ण और उष्ण काल में शीत रहे ) आवदार, चम्पा के समान वर्ण वाली चन्दन गंध से युक्त हो वह सुख पाती है। अल्पस्वेदाल्पनिद्रा च अल्परोभाल्पभोजना। सुरूपं नेत्रगात्राणां स्त्रीणां लक्षणमुत्तमम् ॥११॥ पसीना का कम होना, थोड़ी नींद, थोड़े रोये, घोड़ा भोजन, नेत्रों तथा अन्य अंगों को सुन्दरता,---यह स्त्री का उत्तम लक्षण है। स्निग्धकेशी विशालाक्षी सुलोमांच सुशोभनाम् । सुमुखीं सुहानां च तां कन्यां पश्येद बुधः ॥१२॥ विकने केशों वालो, बड़ी आंखों वाली, सुन्दर लोम, सुख और कान्ति वाली सुन्दरी कन्या का वरण करना चाहिये। यस्याः सरोका पादो उदर व पामकम् । शीघ्र सा स्वपति हसात् ता कल्यां परिवजयेत् ॥१३॥ जिसके पैर रोंयेदार हों तथा पेट में मोराहो, यह स्त्री शीघ्र ही पति को मारती है; अतः इसका वरण नहीं करना। यस्या रोमचये जंधे सरोममुखमण्डलम् । शुष्कगात्री च तां नारा सर्वदा परिवजयेत् ॥१४॥ जिस स्त्री के जंघा ओर मुख मण्डल पर रोय हो तथा शरीर सूखा हुआ हो उससे सदा दूर ही रहना चाहिये। यस्याः प्रदेशिनी याति अंगुष्टादतिवद्धि नी । दुष्कर्म कुरुते नित्यं विधवेयं भवेदिति ॥१५॥ जिस स्त्री के पैर के अंगूठे के पाल चाली अंगुली अंगूठे से बड़ो हो वह नित्य हो दुराचार करती है और विधवा होती है। यस्यास्त्वनामिका पादे पृथिव्यां न प्रतिष्ठते। पतिनाशो भवेत क्षिप्त स्वयं तत्र विनश्यति ॥१६॥ For Private and Personal Use Only

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