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शानप्रदीपिका। उच्चे दृष्टे ग्रहे राशौ उच्चमेवोदकं भवेत् ।
ऊर्ध्वादधस्थलयोः तिष्ठति नोदमधोजलम् ॥१५॥ अल राशियां उच्च ग्रह से युत दृष्ट हों तो पानी ऊंचे और नीच ग्रह से युत दृष्ट हो तो नीचे होता है । (१)
चतुःस्थाननाधस्तान् नागमं वदेत् । दशमे नवमे वर्षे केचिदाहर्मनीषिणः ॥१६॥ (१) जलाजलग्रहवशात् जलनिर्णयमादिशेत् ।
केन्द्रेषु तिष्ठतश्चन्द्रो जीवो यदि शुभोदकम् ॥१७॥ जल ग्रह और अजल ग्रह पर से पानी का विचार करना चाहिये। केन्द्र में यदि चंद्र और गुरु हों तो पानी अच्छा होगा।
चन्द्रशुक्रयुते केन्द्र पर्वतेऽपि जलं भवेत् ।
चन्द्रसौम्ययुते केन्द्र जीर्णालाधरणोदकम् ॥१८॥ केन्द्र में यदि चन्द्र और शुक्र हों तो पर्वत में भी जल मिले। केन्द्र में यदि चंद्र बुध हो तो पुराने खंडहरों में भी जल मिले ।
आरूढारकेन्द्रके चन्द्र परिध्यादिविवीक्षिते ।
अधो जलंततोऽगाधं पूर्वोक्तग्रहराशिभिः ॥१६॥ माह से केन्द्र स्थान में चन्द्र हों और परिध्यादि से दृष्ट हो तो नीचे पहले कहे हुये ग्रहों की राशि से अगाध जल जानना ।
शुक्रेण सौम्ययुक्त न कषायजलमादिशेत् ।
कन्यामिथुनगःसौम्यो जलं स्यादन्तरालकम् ॥२०॥ पूर्वोक्त जल ग्रह और जल राशि से बुध शुक्र का योग होता हो तो पानी कसैला होगा। यदि बुध कन्या और मिथुन में हो तो जल भीतर ही भीतर होगा।
भास्करे क्षारसलिलं परिवेषं धनुर्यदि। राहुणा संयुते मंदे जलं स्वादंतरालकम् ॥२२॥
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