Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ०४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानप्रदीपिका । एते स्वक्षेत्रमुच्च वा पश्यन्ति यदि केन्द्रकम् ॥३॥ त्रिचतु दिवसादन्तमहावृष्टिर्भविष्यति । यदि शुक्र बृहस्पति और चन्द्रमा अपने क्षेत्र को उच्च राशि को या दशम एकादश को देखते हों तो तीन ही चार दिनों के भीतर महावृष्टि होगी । लग्नाच्चतुर्थ शुक्रः स्यात्त दिने वृष्टिरुत्तमा ||४|| चन्द्रे पृष्ठोदये जाते पृष्ठोदयमवोक्षिते । तत्काले परिवेषादिदृष्टे वृष्टिर्महत्तरा ||५|| यदि लग्न से चतुर्थ में चन्द्रमा हो तो उसी दिन उत्तम वृष्टि होगी चन्द्रमा यदि पृष्ठोदय राशि में हो और पृष्ठादय राशि को देखते हों और उस पर परिवेषादि उपग्रहों की दृष्टि हो तो वृष्टि अच्छी होगी । केन्द्रेषु मन्दभौमज्ञराहवो यदि संस्थिताः । वृष्टिर्नास्तीति कथयेदथवा चण्डमारुतः ||६|| केन्द्र ( १, ४, ७, १० ) में यदि शनि, मंगल, बुध और राहु स्थित हों तो बृष्टि न होगी या प्रचण्ड वायु वहेगो । पापसौम्य विमिश्रश्च अल्पवृष्टिः प्रजायते 1 पापश्चेन्मन्दराहुश्चेत् वृष्टिर्नास्तीति कीर्तयेत् ॥७॥ यदि उपर्युक्त स्थानों में पाप और शुभ दोनों प्रकार के ग्रह हों तो वृष्टि थोड़ो होगी यदि शनि और राहु हो तो वृष्टि नहीं होगी । शुक्रकार्मुक सन्धिश्चेद्धारा वृष्टिर्भविष्यति । यदि धनु में शुक्र पडे हों तो मूसलाधार पानो बरसेगा । इति वृष्टिकाण्डः For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159