Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 143
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८) बल, सिंह और मस्त हाथी की सी चाल चाले भोगवान् होते हैं। मृग के समान शृगाल के समान तथा कौए और उल्लू के समान गति वाले मनुष्य द्रव्यहीन तथा भय. ङ्कर दुःख-शोक से ग्रस्त होते हैं। श्वानोष्ट्रमहिषाणां च (2) शुकरोष्ट्रधरास्ततः । गतिर्येषां समास्तेषां ते नरा भाग्यवर्जिताः ॥१२॥ कुत्ते, ऊंट, भैंसे और सूअर की तरह गतिवाला पुरुष भाग्यहीन होता है । दक्षिणावर्तलिंगस्तु स नरो पुत्रवान् भवेत् । __ वामावर्ते तु लिंगानां नरः कन्याप्रजो भवेत् ॥१३॥ जिस पुरुष का शिश्न ( जननेन्द्रिय ) दाहिनी ओर झुका हो वह पुत्रगान तथा जिसकी बांई ओर झुका हो वह कन्याओं का जन्मदाता होता है। ताम्रवर्णमणिर्यस्य समरेखा विराजते । सुभगो धनसम्पन्नो नरो भवति तत्त्वतः ॥१४॥ जिसके लिंग के आगे का भाग ( मणि ) की कान्ति लाल हो तथा रेखायें समान हों वह व्यक्ति सौभाग्यशील तथा धनवान होता है। सुवर्णरौप्यसदृशैर्मणियुक्तसमप्रभैः। प्रवालसदृशैः स्निग्धैः मणिभिः पुण्यवान् भवेत् ॥१५॥ सोना, चाँदी, मणि, प्रवाल (मूंगा) आदि के समान प्रभा वाले विकने मणि ( शिश्नाप्रभाग ) वाले पुरुष पुण्यवान होते हैं । समपादोपनिष्टस्य गृहे तिष्ठति मेदिनी। ईश्वरं तं विजानीयात्प्रमदाजनवल्लभं ॥१६॥ वह पुरुष सामर्थवान् तथा स्त्रियों का प्यारा होता है जिस के पैर पृथ्वी पर बराबर बैठते हैं। उसके घर पृथ्वी भी रहती है। द्विधारं पतते मूत्रं स्निग्धशब्दविवर्जितम् । स्त्रीभोगं लभते सौख्यं स नरो भाग्यवान् भवेत्॥१७॥ पेशाब करते समय जिसका सूत्र दो धार हो कर गिर और उनमें से शब्द न निकले तो वह पुरुष भाग्यवान् होता है और स्त्रीभोग तथा सुख को प्राप्त होता है। १ समासगत नियम विरुद्ध जान पड़ता है, "श्वोष्ट्रमहिषाणां च" ऐसा होना चाहिये था। For Private and Personal Use Only

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