Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

View full book text
Previous | Next

Page 142
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( . ) श्वेतवर्णप्रभैः कान्त्या नखैर्बहसुखाय च । ताम्रवर्णनखा यस्य धान्यपद्मानि भोजनम् ॥५॥ जिनके नख की कान्ति सफेद और प्रकाशमान हो उनको बहुत सुख होता है, जिनके नख की कान्ति लाल ( तामे की तरह ) हो उन्हें असंख्य धान्य और भोजन प्राप्त होता है । सर्वरोमयुते जंघे नरोऽत्र दुःखभाग्भवेत् । मृगजंघे तु राजाह्वो (न्यः) जायते नात्र संशयः॥६॥ जिसके जंधों में ( घुटनों के नीचे और फीलों के ऊपर ) अधिक रोये हों वह मनुष्य दुःखी होता हैं। जिसकी जंघा मृग के समान हो वह राजपुरुष ( राज कुमार) होता है इसमें सन्देह नहीं । शृगालसमजंघेन लक्ष्मीशो न स जायते। मीनजंघं स्वयं लक्ष्मीः समाप्नोति न संशयः ॥७॥ स्थूलजंघनरा ये च अन्यभाग्यविवर्जिताः । सियार के समान जंघा वाला धनी नहीं होता, पर मछली के समान जंघा वाला खूब धनी होता है। मोटी जंघा वाला भाग्यहीन होता है। एकरोमा लभेद्राज्यं द्विरोमा धनिको भवेत् । त्रिरोमा बहुरोमाणो नरास्ते भाग्यवर्जिताः ॥८॥ जिस पुरुष के रोम कूपों से एक एक रोंयें निकले हों वह राजा होता है, दो रोम पाला धनिक और तोन या अधिक रोम वाला भाग्यहीन होता है। हंसचक्रशुकानां च यस्य तद्द गतिर्भवेत् ॥६॥ शुभदंगादवन्तश्च (?) स्त्रीणामेभिः शुभा गतिः । यदि चाल हंस, चकवा या सुग्गे की तरह हो तो वह पुरुष के लिये अशुभ है, पर - यही चाल स्त्रियों के लिये शुभ होती है। वृषसिंहगजेन्द्राणां गति गवतां भवेत् ॥१०॥ मृगवजह्न याने(?) च काकोलूकसमा गतिः। द्रव्यहीनस्तु विज्ञेयो दुःखशोकभयङ्करः ॥११॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159