Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 140
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ललाटे दृश्यते यस्य रेखात्रयमनुत्तरम् । पष्ठिवर्षाणि निर्दिष्टं नारदस्य वचो यथा ॥२३॥ ललाटे दृश्यते यस्य रेखाद्वयमनुत्तरम् वर्षविंशतिनिर्दिष्टं सामुद्रवचनं यथा ॥२४ जिसके ललाट में तीन रेखायें हों उसको साठ तथा जिसके ललाट पर दो रेखायें हो उसकी बीस वर्ष की आयु समझनी चाहिये-ऐसा नारद का वाक्य है । कुचैलिनं दन्तमलप्रपूरितम् बह्वाशिनं निष्ठुरवाक्यभाषिणम् । सूर्योदये चास्तमयेच शायिनं विमुञ्चतिश्रीरपि चक्रपाणिनम् ॥२५॥ मैले वस्त्र को धारण करने वाले, दाँत के मल को साफ न करने वाले, बहुत खाने वाले, कटु वाक्य बोलने वाले, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोने वाले पुरूष को-वे चाहे विष्णु ही क्यों न हों-लक्ष्मी छोड़ देती हैं। अंगुष्ठोदरमध्यस्थी यवो यस्य विराजते । उत्तमो भक्ष्यभोजी च नरस्स सुखमेधते ॥२६॥ जिसके अंगूठे के उदर (बीच) में जौ का चिन्ह हो उत्तम भोग को प्राप्त करता हुमा सुख की वृद्धि पाता है। अतिमेधातिकीर्तिश्च अतिक्रान्तसुखी तथा ।। अस्निग्धचैलि निर्दिष्टमल्पमायुर्विनिर्दिशेत् ॥२७॥ जो मनुष्य अत्यधिक बुद्धिमान, अतिशय कीर्तिमान् और अत्यन्त सुखी तथा मलिन वस्त्रधारी रहता है-वह अल्पायु होता है ऐसा जानना चाहिये। रेखाभिर्बहुभिः क्ल शी रेखाल्प-धनहीनता । रक्ताभिः सुखमाप्रोति कृष्णाभिश्च वने वसेत् ॥२८ हथेली में बहुत रेखायें हों तो मनुष्य दुःखी एवं कम हों तो निर्धन होता है। रेखायें यदि लाल हों तो सुख और काली हों तो वनवास होता है ॥२८॥ श्रीमान्नृपश्च रक्त्ताक्षो निरर्थः कोऽपि पिङ्गलः । सुदीर्घ बहधैश्वयं निमासं न च वै सुखम् ॥२६॥ आँखे लाल हों तो धनवान और राजा, पिङ्गलवर्ण की हो तो निर्धन, बड़ी ३ हों तो ऐश्वर्यवान और मांस हीन हों (घसी हुई हों) तो दुःखी जानना चाहिये। For Private and Personal Use Only

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