Book Title: Gyan Pradipika
Author(s): Ramvyas Pandey
Publisher: Nirmalkumar Jain

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Page 138
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) मनुष्य को देह में, रंग से उत्तम स्निग्धता (चिकनाई, आव ) है, स्निग्धता से भी उत्तम स्वर है और स्वर ( आवाज़ ) से भी उत्तम सत्त्व है। (सत्त्व वह वस्तु है जिसके कारण मनुष्य की सत्ता है, जिसके न रहने से मनुष्यत्व ही नहीं रहता) इसी लिये सत्त्व ही सब का प्रतिष्ठा-स्थान है। नेत्रतेजोऽतिरक्त च नातिपिच्छलपिंगलम् । दीर्घबाहुनिभैश्वयं विस्तीणं सुन्दरं मुखम् ॥१२॥ आखों में तेज और गाढ़ी लालिमा का होना तथा बहुत चिकनाई और पिंगल वर्ण (मांजर-पन) का न होना, भुजाओं का दीर्घ होना, और मुंह का विशाल और सुन्दर होना, ऐश्वर्य को प्राप्त करते हैं। उरोविशालो धनधान्यभोगी शिरोविशालो नृपपुंगवः स्यात् ।। कटेविशालो बहुपुत्रयुक्तो विशालपादो धनधान्ययुक्तः (१३ जिसकी छाती चौड़ी हो वह धन धान्य का भोक्ता, जिसका ललाट चौड़ा हो वह राजा, जिसकी कमर विशाल हो वह बहुत पुत्रोंवाला तथा जिसके चरण विशाल हो वह धनधान्य से युक्त होता है। वक्षस्नेहन सौभाग्यं दन्तस्नेहेन भोजनम् । त्वचःस्नेहेन शय्या च पादस्नेहेन वाहनम् ॥१४॥ वक्षःस्थल (छाती) की चिकनाई से सौभाग्य, दाँत को चिकनाई से भोजन, चमड़े की चिकनाई से शय्या और चरणों की चिकनाई से सवारी मिलती है। अकर्मकठिनौ हस्तौ पादौ चाध्वानकोमलौ । तस्य राज्यं विनिर्दिष्ट सामुद्रवचनं यथा ॥१५॥ विना काम काज किये भी जिसका हाथ कठिन (कड़ा) हो, और मार्ग चलने पर जिसके पैर कोमल रहते हों, उस मनुष्य को इस शास्त्र के कथन के अनुसार, राज्य मिलना चाहिये। दीर्घलिंगेन दारिद्र यम् स्थूललिंगेन निर्धनम् । कृशलिंगेन सौभाग्यं हस्खलिंगेन भूपतिः ॥१६॥ For Private and Personal Use Only

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