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( ६ )
पंचरेखा युगत्रीणि द्विरेखा च समास्थितं । नवत्यशीतिः षष्ठिश्च चत्वारिंशच्च विंशतिः ॥३८
जिसके क्रमशः पाँच, चार, तोन, और दो रेखायें हों क्रमशः ६०, ८०, ६०, ४० और २० वर्ष जीता है ।
इत्यायुर्लक्षणं नाम प्रथमं पर्व
द्वितीयं पर्व
अथ तत् सम्प्रवक्ष्यामि देहावयवलक्षणम् । उत्तमं मध्यमं हीनं समासेन हि कथ्यते ॥ १ ॥
अब मैं संक्षेप में शरीर के उन लक्षणों को कहता हूं जिन से उत्तम, मध्यम और अधम का ज्ञान होता है ।
पादौ समांसल स्निग्ध रक्तावर्तिमशोभनौ 1
उन्नतौ स्वेदरहितौ शिराहीनौ प्रजापतिः ॥ २॥
जिस पुरुष के पेर मांसयुक्त, चिकने, रक्तिमा लिये हुये, सुन्दर उन्नन और पसीना न देने वाले तथा शिराहीन ( ऊपर से शिरा न दिखाई दे - ऐसे ) हों वह बहुत प्रजा ( सन्तानों ) का मालिक होता है।
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यस्य प्रदेशिनी दीर्घा अंगुष्ठादतिवर्द्धिता ।
स्त्रीभोगं लभते नित्यं पुरुषो नात्र संशयः ॥ ३॥
जिसकी प्रदेशिनी ( पैर के अंगूठे के पास वाली उंगली ) अंगूठे से भी बड़ी हो वह पुरुष निस्सन्देह नित्य ही स्त्रीभोग पाता है ।
तथा च विकृतैरुक्षैर्नखैर्दारिद्र यमाप्न यात् । पतिताश्च नखा नीला ब्रह्महत्यां विनिर्दिशेत् ॥४॥
विकृत, रूखे नखों वाला पुरुष दरिद्र होता है। गिरे हुए और नील वर्ण के नख से ब्रह्महत्या का निर्देश करना चाहिये ।
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