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हानप्रदीपिका। चतुर्थे पंचमे चन्द्रो यदि स्थायी जयी भवेत् ॥२०॥ तृतीये पंचमे भानुः यदि सेनासमागमः ।
मित्रस्थानस्थितः संधिोंचस्थायी जयी भवेत् ॥२१॥ ४, या ५ में यदि चन्द्रमा हो तो स्थायी की जय होगो, ३ या ५ में यदि सूर्य हो और वह यदि मित्र स्थान में हो तो संधि, अन्यथा स्थायी की जय बतानो चाहिये।
चतुर्थे वित्तदः स्थायी अष्टमे यायिनो मृतिः । यदि सूर्य अर्थ में हो तो स्थायी को धनद और ८ में हो तो यायी की मृत्यु बतानी चाहिये।
उदयात् सहजे सौम्यो द्वितीये यदि भास्करः ॥२२॥ स्थायिनो विजयं ब्र यात व्यत्यये यायिनो जयं।
ससौम्ये भास्करे युक्ते समं ब्रूयात द्वयोस्तयोः ॥२३॥ लग्न से तृतीय में यदि शुभ ग्रह हो द्वितीय में यदि सूर्य हो तो स्थायी की अन्यथा यायी की विजय होती है। किन्तु यदि सूर्य शुभग्रहों से युत हो तो दोनों को बराबर कहना चाहिये।
उदयात् पंचमे सौम्ये स्थायी भवति चार्तिकः ।
द्वित्रिस्थे सोमजे यायी विजयी भवति ध्रुवम् ॥२४॥ लग्न से यदि पंचम में बुध हो तो स्थायी कातर होगा। यदि बुध २ रे, ३रे स्थान में हो तो यायी निश्चय विजयी होता है।
एकादशे व्यये सौम्ये स्थायी विजयमेष्यति ।
एकादशे रवी यायी हतस्त्रीपतिवांधवः ॥२५॥ यदि बुध ११, या १२ वें स्थान में हो तो स्थायी की विजय होती है। रवि यदि ११वे स्थान में हो तो यायी का स्त्री धन आदि सर्वस्व नष्ट होगा।
शत्रुनीचस्थिते सूर्ये स्थायिनो भंगमादिशेत् । उदयात्पंचमे शत्रुव्ययेषु विषये यदि ॥२६॥
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