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ज्ञानप्रदीपिका ।
मध्येन्दुमुखमारभ्य मैत्रभाद भानिशामुखाः । (? ( ईशकोष्ठयं त्यक्त्वा तृतीयादित्रिषु क्रमात् ॥३॥ कृतिकादित्रयं न्यस्यं तदधी रौद्रभं न्यसेत् । तदुत्तरं येष्येव पुनर्वस्वादिकं त्रयम् ॥४॥
बीच से मृगशीर्ष से लेकर लिखना और अनुराधा से तथा भाभिमुख लिखना ईशान कोण में दो कोष्ठ छोड़कर तीनों पङ्क्तियों में क्रम से कृतिकादि तीन तीन न्यास कर उसके नीचे आर्द्रा को लिखना उसके बाद तीनों में पुनर्वस्त्रादि तीन नक्षत्रों को लिखना चाहिये । तत्पश्चिमादियाम्येषु मघाचित्रावसानकं ।
तत्पूर्वकोष्ठयोः स्वातीविशाखे न्यस्य तत्परम् ॥५॥
उनसे पश्चिम दक्षिण क्रम से मघा से लेकर वित्रा तक लिखना । उसके पूर्वकोष्ठों में स्वाती और विशाखा को रखना ।
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प्रदक्षिणक्रमादग्निनक्षत्रास्ताश्च तारकाः ।
मध्याह्ने दक्षिणस्यास्य पश्चिमान्त्यानिशामुखात् (१) ॥६॥
प्रदक्षिण क्रम से कृतिकादि नक्षत्रों को न्यास करना चाहिये । मध्याह्न में दक्षिणाभिमुख और ऊर्धोत्तर रात्रि में पश्चिमाभिमुख कोष्ठ को समझ कर देखना चाहिये । अर्द्धरात्रौ धनिष्ठा पूर्ववदगणयेत् क्रमात् ।
आग्नेय्यां दिशि नैऋत्यां वायव्यां कोष्ठकद्वयम् ॥७॥ त्यक्त्वा प्रत्येकमेवं हि तृतीयायां विलोकयेत् ।
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आधी रात को afgादि क्रम से पहले की हुई रीति से गणना करनी चाहिये। आग्नेय कोण नैॠत्य और वायव्य कोष्ठकों में दो दो कोष्ठ छोड़ छोड़ कर प्रत्येक को तीसरे क्रम से देखना चाहिये ।
दिनार्थं सप्तभिर्ह वा तल्लब्धं नाड़िकादिकम् । ज्ञात्वा तत्प्रमाणेन कृतिकादीनि विन्यस्येत ॥८॥
दिनार्ध को सात से भाग देने पर जो प्राप्त हो उसे नाड्यादिक समझ कर उसी के प्रमाण से कृतिकादि नक्षत्रों का विन्यास करना चाहिये ।
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