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ज्ञानप्रदापिका।
उन राशियों में पूर्य हो तो पानी खारा और परिवेष धनुराशियों में राहु शनैश्चर का योग हो तो अन्तराल में जल होता है।
बृहस्पतौ राहयुते पाषाणो जायतेतराम् ।
शुक्र चन्द्रयुते राही अगाधजलमेधते ।।२२।। यदि बृहस्पति और राहु युक्त हो तो नीचे खोदने पर पत्थल निकलता है शुक (१) चन्द्रमा राहु का योग हो तो अगाध जल वहां पर होता है।
अर्कस्योन्नतभूमिः स्यात् पाषाणा कांडकस्थले ।
नालिकेरादिपुन्नागपूगयुक्ता क्षमा गुरोः ॥२३॥ काण्डकस्थल-निर्जन स्थान में सूर्य की पाषाण मयी उन्नत भूमि होती है। नारियल पान सुपारी इत्यादि से युक्त भूमि बृहस्पति की होती है ।
शुक्रस्य कदलीवल्ली बुधस्य फलिता वदेत् ।
वल्लिका केतकी राहोरिति ज्ञात्वा वदेदबुधः ॥२४॥ शुक्र के लिये केले का वृक्ष और बुध के लिये फली हुई लता होती है। केतकी की वल्ली राहु को होतो यह सब जान कर विद्वान् को आदेश करना चाहिये।
शनिराहूदये कोष्ठे रङ्गवल्लोकदर्शनम् ।
स्वामिदृष्टियुते वाऽपि स्वक्षेत्रमिति कीर्तयेत् ॥२५॥ शनि राहु का उदय कोष्ठ में होतो रङ्ग बल्ली को दिखलाता है यदि लग्न स्वामी से दष्ट या युत हो तो अपनी जमीन में अपना वृक्ष कहना चाहिये ।
__ अन्ये (2) युक्तेऽथवा दृष्टे परकीयस्थलं वदेत् । यदि दूसरे का दृष्टि योग हो तो दूसरे की भूमि बतानी चाहिये ।
इति कूपकाण्डः
सेनस्यागमनं चैव प्रवक्ष्याारभूभृताम् । चरोदये च सारुढे पापाः पञ्चगमा यदि ॥१॥
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