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ज्ञानप्रदीपिका ।
यन्नक्षत्रं तथा सिद्ध प्रश्नकाले विशेषतः । कृतिकास्थानमारभ्य पूर्ववद्गणयेत्सुधीः ॥६॥
इस रीति से जो नक्षत्र आवे और प्रश्न काल में विशेष कर इस रीति से देखकर कृतिका के स्थान से लेकर पहले कही हुई रीति से गणना करनी चाहिये ।
यत्रेन्दुश्यते तत्र समृद्धिरुदकं भवेत् । शुक्रनक्षत्रकोष्ठेषु तत्तत्स्वर्णमुदाहरेत् ॥ १०॥
जहां पर चन्द्रमा दीख पड़े वहां पर बहुत ज्यादे जल होता हैं और शुक्रादि नक्षत्र कोष्ठक में वहां वहां पर स्वर्णादिक को कहना चाहिये ।
तुलोक्षनककुंभालिमीनकक्र्यालिराशयः । जलरूपास्तदुदये जलमस्तीति निर्दिशेत् ॥ ११॥
६३
तुला, वृष, मकर कुंभ, वृश्चिक, मीन और कक ये जल राशियां हैं अतः इनके उदय 'प्रचुर जल बहाना चाहिये ।
में
तत्रस्थौ शुक्र चंद्रौ चेदस्ति तत्र बहूदकम् । बुधजीवोदये तत्र किंचिजलमितीरयेत् ॥१२॥
उसमें यदि शुक्र और चन्द्र हों तो पानी ज्यादा और बुध वृहस्पति हों तो कुछ कुछ जल बताना चाहिये ।
एतान् राशोन् प्रपश्यंति यदि शन्यर्कभूमिजाः । जलं न विद्यते तत्र फणिदृष्टे वहूदकम् ॥१३॥
इन राशियों को यदि शनि सूर्य और मंगल देखते हों तो जल नहीं और राहु देखें तो बहुत जल होता है।
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अधस्ताद्दयारूढं छत्रयोरुपरि स्थिते । जलग्रहयुते दृष्टे अधस्तात्पाददो जलम् ॥१४॥
लग्न से नीचे और छत्र से ऊपर यदि जल ग्रहों का दृष्टि योग हो तो नीचे पैर तक ही जल बताना चाहिये ।