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शानप्रदीपिका। शुक्रण युक्तो दृष्टो वा भौमश्चेत्परगामिनी।
बृहस्पतिर्बुधाराभ्यां युक्तश्चेत्कन्यका यदि ॥७॥ शुक्र से यदि भौम ( मंगल ) युत या दृष्ट हो तो परपुरुषगामिनो और गुरु यदि बुध और मंगल से युत दृष्ट हो तो कन्या भी स्वैरिणो होती है।
शुक्रवर्गयुते भौमे भौमवर्गयुते भृगौ।
पृथके (१) विधवा भर्ता तस्या दोषान्न विंदते ॥८॥ शुक्र वर्ग से भौम या भौम वर्ग से यदि शुक्र युत हो तो पति से पृथक् वह स्त्री विधवा की भांति रहती है और वह उसके दोष नहीं जानता।
भानुवर्गयुते शुक्र राजस्त्रीणां रतिर्भवेत् ।
जीववर्गयुते चंद्रे स्नेहेन रतिमान्भवेत् ॥६॥ सूर्य वर्ग से यदि शुक्र हो तो राजस्त्रियों से रति बताना चाहिये। गुरुवर्ग से यदि चन्द्रमा युत हो तो प्रेम पूर्वक रतिमान् कहना चाहिये।
चंद्रस्त्रिवर्गयुक्तश्चेत् स्त्री सुतज्ञवती भवेत् ।
शनिश्चंद्रेण युक्तश्चेत अतीवव्यभिचारिणो ॥१०॥ चन्द्र यदि त्रिवर्ग से युत हो तो स्त्री पुश्वती और शनि चंद्र से युत हो तो अधिक व्यभिचारिणो होती है ।
पापवर्गयुते दृष्टे शुक्रश्चेत् व्यभिचारिणी।
अरिवर्गयुतश्चन्द्रो यद्यमित्रं वधूनरः (?) ॥११॥ यदि शुक्र पाप वर्ग से युत या दृष्ट हो तो व्यभिचारिणो और शत्रु वर्ग से यदि चंद्रयुत हो तो स्त्री पुरुष में स्नेह नहीं होता।
नीचवर्गयुतश्चंद्रो न च स्त्रीभोगकामुकः ।
मित्रवर्गयुतश्चंद्रः मित्रवर्गवधूरतः ॥१२॥ पदि चन्द्र नोच वर्ग से युत हो तो स्रोभोग से मनुष्य कामुक नहीं होता। मित्र वर्ग से यदि युत हो तो पुरुष मित्र की स्त्रो से रत है-यह बताना चाहिये ।।
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