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ज्ञानप्रदीपिका। स्त्रीपंसो रतिभोगौ च स्नेहोऽस्नेहः पतिव्रता।
शुभाशुभौ क्रमात्प्रोक्तो शास्त्र ज्ञान-प्रदीपिके ॥१॥ इस ज्ञानप्रदीपक शास्त्र में स्त्री-पुरुष का पारस्परिक प्रेम पातिव्रत्य और द्रोह, इस प्रकार शुभ और अशुभ होते हैं वह कहा गया
तीव्रता (?) उदयारूढो (?) खेद्रेषु भुजगो यदि ।
तेषां दुष्टस्त्रियः साक्षादवानामपि संशयः ॥२॥ . लग्न, आरूढ़, दशम में यदि राहु हो तो स्त्रो दुष्ट होगी, चाहे वह देवता के घर ही क्यों न हो।
लग्नादेकादशस्थाने तृतीये दशमे शशी।
जीवदृष्टियुतस्तिष्ठेत् यदि भार्या प्रतिव्रता ॥३॥ लग्न से एकादश, तृतीय और दशम में यदि चंद्र हो और गुरु की दृष्टि से युक्त हो तो भार्या पतिव्रता होगी।
चन्द्र पश्यन्ति पुंखेटास्तेन युक्ता भवंति चेत् ।
तभाया दुर्जनां ब्रूयादिति शास्त्रविदो विदुः ॥४॥ चन्द्रमा को पुरुष ग्रह देखते हों या युत हों तो निश्चय हो भार्या दुर्जन होगी। यही शास्त्रज्ञों का कहना है।
सप्तमस्थो द्विषरखेटः नीचारिगशशी तथो।
बंधुविद्देषिणी लोके भ्रष्टा सा तु शुभाशुभैः ॥५॥ नीच किंवा शत्रुस्थानगत चन्द्रमा यदि सप्तम में शत्रु-ग्रह से युत किंवा दुष्ट हो तो स्त्री भ्रष्टा होगा।
भानुजोवौ निशाधीशं पश्यंतौ च युतौ यदि।
पतिव्रता भवेन्नारी रूपिणीति वदे बुधः ॥६॥ सूर्य और गुरु यदि चंद्रमा को देखते हों या युत हों तो वह स्रो स्वरूपवती और पतिव्रता होगी।
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